मनुस्य का विराट रूप | Manusya Ka Virat Rup

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Manusya Ka Virat Rup by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनुष्य कां विराट रूप 3 राज्ञाम्‌ ऋपीणां 'घरित्तानि तानि, कुत्तानि .. पूर्वेरकृतानि पुत्रैः ॥ -जुदचरित मथम श्रष्याय | संस्कृत के एक नोतिंसार ने भी कहा हूँ कि कुम्भ एफ फुंद्मा भी नहीं सोच सकता था, लेकिन फुंभज समुद्र पो गये--- “कुम्मोडपि कूपमपि शोपयितु' न शक्तू: । छन्मोदूमत्रेन सुनिनाऽमबुधिरेव पीतः 11 श्रधिरथ जोयन.भर रथ रौ हतता रहा; परन्तु कं दिग्विजयी महारयौ चन गया | इत अकार फे कितने हौ उदाहरणा दिये जा सक्ते हि 1 भ्त्येक ध्यवित थे श्रपने हदय से इस प्रकार की भावना निकाल देनी 'वाहिये कि जो-कुछ पर, सफते थे, काप-दादे हौ कर सक्ते ये श्रोर श्रवः +इस फलिपुय में फिसी को कोई सिद्धि मिल हो नहीं सकती । सिद्धि तो सहुत-से लोगों पो नित्य मिलती दिखाई देत हे 1 अआयुर्वल मी मुख्य नहीं है.--यदि कोई यह सोचता हूं कि थोड़ी श्रापु में कया हो सकता है, तो, उसे उन महापुरुषों के जीयन कौ झौर ध्यान देना चाहिये जिन्होंने 'ोड़ी 'चायु में चहुत्त चड़े-वड़े काम विपे है । दंकरा- चार्प ने ३२ थर्ष की छाय में जितना किया; उत्तना धुत से श्येग ३०० यर्ष की श्राप में भी नहीं कर सकते थे । सन्त शानेश्वर ने १५ वर्ष की ध्वस्या में गोता को सुप्रसिद्ध ज्ञानेदयरी टीका लिखी । १६--र० घष के भौतिक जीवन में उन्होंने घ्पने फो श्रमर सता लिया । इतिहासप्रतिद्ध पराक्रमी सि्मन्दर ने भी श्रपनं ३०-३२ ययं फे जौयन मेषौ सारे वोरता कै पयं किये चे । वास्तव मे, मनुप्य पने पत्वमं से प्राय को अवधि घढ़ा लेता हू । चोडे समय में भी यहू झधिक ब्लाम कर सफता हैँ । झमे- रिया के प्रत्यात घायिप्यररक एडिसन से एक सार विसो ने पृष्टा कि श्राय श्नायु वना है, तो उतने उत्तर दिया १३५ यरं । मस्तकर्तो म्ले इत पर झाइचपे हना 1 तव एडसिन ने फिर षहा--यद्यपि वग्ल-गष्एना के न




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