मारवाड़ के ग्राम गीत | Marwar Ke Gram Git

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(*-४ ) लिजी पढ़ो यहिने झपने घरों में प्रचलित ' सुन्दर स्पभापिक झौर उपदेशप्रद गीत भूलती जा रही हैं झौर उनके स्थान में निकम्मी और प्रायः झरनील गज़लें झादि थपना री हैं, उस एन्द्र प्राकृतिक घस्तु की श्चोर षस संग्रह दाया उनका ध्यान ज्ञायगा । यह प्राम गीत पक निरर्थक यर किम्सेकानियौकी तरह मन बदलाव की दी चीज्ञ नी 1 यद धात श्रंगरेज्ञी मापा में इस चिपय पर प्रक्यरिन पुस्तकं से भ्त धकार श्रफट है । क्योकि अंग्रेज विद्वानों ने भी भारतीय प्राम गीर्तोका पड़े परिधम श्र रुखि के साथ संचय किया है, जिनका पढ़फर इदय गदुगद दो जाता है । वास्तव नैः यदध कषिता है दी देखी ष्टी षस्तु । कवि घर्डस्वोर्थ साइव ने कहा है :--+ *कुठडिए 15 (16 8०ावणद०ड छण्टप्ीठरर ० तफल व्ण १ ५कवित्ता यो चौज्ञ है जिससे मचुरप्यो के विचार श्रापसे अरप खमद्धवे दै शौर प्रकट होते हैं ।” शर्धात थो कथिता ही नहीं जिससे छचिम भाव या शब्दों की दूंसाइस हो । यही साय कर मारवाड़ी भाषा के उन माय पूर्ण गीतों में -जो धराज तक मपि रूप से प्रचलित है-धोड़े से घाचकों के भेट किये जाते हैं । ये गीत दिनोदिन लुध शोते जा रदें हैं दौर उनके स्थान में कालत नथी सङ्गं के मीन शो किसी मशरफ़ के नदीं ्ोते हं घ्ुत गाये जाने लगे हं । स पकार यदि ये पुस्तक रूप में था जायेंगे तो दिन्दी-साइित्य फे एक्र




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