रसिक छैल व्यक्तित्व एवं कृतित्व | Rasik Chail Vyaktitv Evm Krititv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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^ २० वर्ष में आग्रह करने पर काका जी के एक मात्र सुपुत्र श्री रघुराज सिंह जी ने उपरोक्त सामग्री का संग्रह करके एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का सराहनीय कार्य किया है। राष्ट्रीय स्तर के कितने ही कवि सम्मेलनों को आपने समय-समय पर अध्यक्षता की आपने कितने ही राष्ट्रीय मुशायरों को सहाकत की । आप उच्च कोटि के साहिंत्यक व्यक्ति तो थे ही किन्तु सर्वोच्च कोटि के संगीतज्ञ भरी थे । ऐसा कोई देशी और विदेशी साज न था जो काका जी के पास न हो और उसे बजाने में दक्षता प्राप्त न की हो । ढोलक, तबला, नगाड़ा, नाल भौर मृदंग पर जब आपके हाय बिरकते थे तो लोगों को जवान पर वाह-वाह का स्वर ही सुनाई देता था । माप वॉसुरी, सेक्सोफोन, कला रानेट दिलरवा, मिंटार, वाय- लिन, सारंगी, सितार और हारमौतियाँ बजाने में अपना स्थान रखते थे । विदेशी साज खानों के तो आप राजस्थान के जाने माने कलाकार थे । अगर मैं यह कहूँ कि मेरी नजर में ऐसा कोई साज नहीं था कि जिसे काका जी वखूवी से न वजाते थे तो कोई अतिभि- योक्ति नहीं होगी । खेल की दुनियाँ में जिन लोगों को काका जी को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, वे आज भी काकाजी की अगाध प्रशंसा करते नहीं थकते हैं। आप विलियदस के चैम्पियन ये, टैनिस के कप्तान थे । हाकी, फुटवाल, बौलीवाल, फ्रिकिट, बैट- मिन्टन, राउन्डर, स्कौच एवं देशी खेल काई डडा और कबड्डी के घुरन्धर (कुशल) खिलाडी थे । निशाने (50000) में भरतपुर रियासत के समय कर्नल सवाई श्री प्रजेन्द्र सिह महाराजा को छोड कर अपना सर्वोच्च स्थान कायम रखते थे । ऐसे थे हरफन मौला हमारे काका जी 1 आज काकाजी हमारे वोच में नही हैं लेकिन उनकी मधुर स्मृतियाँ आज भी हमारे मन मस्तिष्क पर अमिट छाप की तरह से बकित हैं । मैं अपने को भाग्यशाली समझता हूँ कि ऐसे महापुरुप की संगत में रहने का लगभग दो दशक तक मुझे सुअवसर प्राप्त हुआ । आपकी चिर स्मरणीय स्मृति भे 1971 से कला मन्दिर के विया भवन में निरन्तर होली के पावन पर्व पर चौदवी के चाँद की रोशनी म मेरी आप मै अगाध श्रद्धा होने के कारण “'यदुराज स्मृति मिशा” का आयोजन सम्पन्न होता आ रहा है। चौदवी की रात को नाच.




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