एक बनिहार का आत्म - निवेदन | Ek Banihar Ka Aatm - Nivedan

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Ek Banihar Ka Aatm - Nivedan by सुरेश कांटक - Suresh Kantak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड मे झोक दो इस देश को । साले अब जीने नहीं देगे। चारों तरफ डंका टते हैं--इमरजेसी है, इमरजेंसी है। हम सुनहरे काल की ओर बढ रहे । काम अधिक बातें कम । हाय रे काम, हाय री बाते ! हाय रे इमर- सी । समुर हल्ला करते है । इतने लोग बर्खास्त हुए । इतने लोग मुअत्तल ए। आखों मे धूल झोकते है ससुर। और महेश, तुम भी अव्वल दर्जे के खें हो । जीवन भर यो ही रह जाभोगे । जमाना कहा से कहा जा रहा है म्हे कुछ नहीं सूझता * उस रोज वह खर्चा-वर्चा माग रहा था तो दे देते । द्वान्तवादी लोग भूखों मरते है यहा । उस रोज काम तो हो जाता । और ही तो साले का गुह निकाल देते। किस दिन के लिए जवान हो ? हम वानथेतौ गोरो की रेल तक उखाड फेकते थे । बताइये भला, साल-सान र फाइल में कागज बद रहता है 1 दिनेश डस्चार्ज हो जायेगा तो कौन ला हमासै रोटी का जिम्मा लेगा ? ममर हा वच्चे, अच्छा ही किया तुमने । मरजेसी है। समझ से काम लेना चाहिए । कल ही आरा चले जाओ । लो स रुपये, दे देना साले को ।' बाबू जी उसे डाट कर चुप हो गये । वह डाट उसे अन्दर तक जा लगी । उसकी रगो में चौहत्तर का खून ग गया । बहुत मारी वाते पल भर मे उफन आई । जोगेश, रगीला, पुरारी ओर कई एक मित्रो के चेहरे आषो मे उतर आये । जेल के शिकजे #र सून राइफरने ˆ ्िपाहौ भौर सङके लात सडके ¡ वह्‌ सिहर या। मगर फिर भी दूसरे दिन वह पाण्डे बाबू की कुर्सी के पास खड़ा था । “बड़े वावू, अब तक भेरा भेरीफिकेशन नही गया ?' अपने अदरकी फान ओर आक्रोश को दबाते हुए पूषा । “कया ? किसका भेरीफिकेशन्‌ ?' पाण्डे वावू अजान होते हुए बोले । “पिछले दिनों चर्चा किया था आपसे 1 भूल गये क्या ?” लाख कोशिश बावजूद उसकी आखो में उतरे हुए लाल डोरे पाण्डे वात्रू की आखो में नाक गये । अच्छा ! याद आया । अब तक तो नहीं भेज पाया हू । आखिर क्यो? _ “'ओफफ ! आप भी अजीव आदमी है भाई । मैं कब कहता हू नहीं किसके लिए / 17




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