एक बनिहार का आत्म - निवेदन | Ek Banihar Ka Aatm - Nivedan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ड मे झोक दो इस देश को । साले अब जीने नहीं देगे। चारों तरफ डंका
टते हैं--इमरजेसी है, इमरजेंसी है। हम सुनहरे काल की ओर बढ रहे
। काम अधिक बातें कम । हाय रे काम, हाय री बाते ! हाय रे इमर-
सी । समुर हल्ला करते है । इतने लोग बर्खास्त हुए । इतने लोग मुअत्तल
ए। आखों मे धूल झोकते है ससुर। और महेश, तुम भी अव्वल दर्जे के
खें हो । जीवन भर यो ही रह जाभोगे । जमाना कहा से कहा जा रहा है
म्हे कुछ नहीं सूझता * उस रोज वह खर्चा-वर्चा माग रहा था तो दे देते ।
द्वान्तवादी लोग भूखों मरते है यहा । उस रोज काम तो हो जाता । और
ही तो साले का गुह निकाल देते। किस दिन के लिए जवान हो ? हम
वानथेतौ गोरो की रेल तक उखाड फेकते थे । बताइये भला, साल-सान
र फाइल में कागज बद रहता है 1 दिनेश डस्चार्ज हो जायेगा तो कौन
ला हमासै रोटी का जिम्मा लेगा ? ममर हा वच्चे, अच्छा ही किया तुमने ।
मरजेसी है। समझ से काम लेना चाहिए । कल ही आरा चले जाओ । लो
स रुपये, दे देना साले को ।' बाबू जी उसे डाट कर चुप हो गये ।
वह डाट उसे अन्दर तक जा लगी । उसकी रगो में चौहत्तर का खून
ग गया । बहुत मारी वाते पल भर मे उफन आई । जोगेश, रगीला,
पुरारी ओर कई एक मित्रो के चेहरे आषो मे उतर आये । जेल के शिकजे
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या।
मगर फिर भी दूसरे दिन वह पाण्डे बाबू की कुर्सी के पास खड़ा था ।
“बड़े वावू, अब तक भेरा भेरीफिकेशन नही गया ?' अपने अदरकी
फान ओर आक्रोश को दबाते हुए पूषा ।
“कया ? किसका भेरीफिकेशन् ?' पाण्डे वावू अजान होते हुए बोले ।
“पिछले दिनों चर्चा किया था आपसे 1 भूल गये क्या ?” लाख कोशिश
बावजूद उसकी आखो में उतरे हुए लाल डोरे पाण्डे वात्रू की आखो में
नाक गये ।
अच्छा ! याद आया । अब तक तो नहीं भेज पाया हू ।
आखिर क्यो? _
“'ओफफ ! आप भी अजीव आदमी है भाई । मैं कब कहता हू नहीं
किसके लिए / 17
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