नाटक साहित्य का अध्ययन | Natak Sahitya Ka Adhyayan

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Natak Sahitya Ka Adhyayan by इन्दुजा अवस्थी - Induja Avasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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44) कि यह कोई भ्रविकासदील बद्ध कला-चेतना नहीहै। रगमंचमे जिख यथाथेवादी आन्दोलन की चरम. परिणति 19वीं शताब्दी के श्रन्त में हुई, पश्चिमी देश पिछले 30-40 वर्षों से अरब उससे विद्रोह कर रहे हैं । इस विद्रोह ने इंग्लेंड, फ्रांस, जमंनी, अमरीका झौर रूस सभी देशों में 19वीं शताब्दी की रंगमंच-प्रवृत्तियों श्रौर नाट्य- धारशणाश्रोंको बदल दिया है। रूसमें इस शताब्दी के प्रारस्भिक वर्षों में ही पहले बख्तान- गाव श्रौर बाद मे मायरहोल्ड ने यथाथ॑वादी नास्य शैली के विरुद्ध विद्रोह किया, श्रौर पुर्वी देशों से अनेक नाट्य-कला-तत्व ग्रहण किए, जैसे रंगमंच पर बहु-घरातल विधान, पात्रों का व्यंजनात्मक श्फुंगार, मुखौटों का प्रयोग, अभिनेताश्रों श्रौर दशकों का सःमीप्य तथा शेलीबद्ध ्रभिनय गौर प्रदर्शन शली। यह खेद की बात है कि हम श्राज भी जब पदिचमी नात्य-कला के प्रभाव की बात करते हैं तो इसी पिछले यथाथंवादी रंगमंच श्रान्दोलन को हृषि में रखते हैं, श्रौर नाटकीय भ्रन्वितियों, यथाथंवादी रंग-सज्जा तथा तसवीरी-फ्रेम वाले रंगमंच की बात सोचते हैं । श्रौर इस स्थिति की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इधर पिछले दस- पाँच वर्षों में हमारे प्रतिभाशील निदशकों पर जो परिचमी प्रभाव पड़रहाहै, वह्‌ उन्हीं नाट्य-तत्वों का है जो पूर्वी परम्परा के तत्व हैं, श्रौरजो पर्चिमी देशो से होकर, हमारे पास श्राते हैं; कभी तो कुछ विक्ृत होकर, श्रौर कभी कुछ परिष्कृत श्रौर रंगमंच के लिए रूपान्तरित होकर । भ्राज श्रनेक देशों में हमारी लोक रंगमंच शेलीके झसुरूप नाटकों का प्रदर्शन सादे खुले रंगमंचों श्रौर रंगस्थलों में हो रहा है श्रौर लोक परम्परा की रूढ़ियाँ श्रपनाई जा रही हैं । महानु निर्देशकों का कथन है कि यथाथंवाद रंगमंच पर अपना जीवन जी चुका है; दूसरे उसको फिल्म में कहीं अधिक प्रभावदयाली माध्यम मिल गया है । जमंनी के नाटककार ब्रेदट ने ऐसे महाकाव्योचित नाटक की कल्पना की जो अपने रूप-विधान में भारतीय परम्परा के निकट है, ग्रौर उन्होने हमारी मध्ययुगीन भौर लोक परम्परा के समान श्रपने नाटकों में नाटकीय श्रौर प्राख्यानक तत्व सिलाकर नाट्य- रूप को एक नया ही झ्रायाम दे दिया । फ्रांसीसी नाटककार श्रनुई श्रौर जेरादू श्राज नाटकों में ऐसे रचना-व्यवहारों का प्रयोग कर रहे हैं, जो पूर्वी परम्परा से जुड़े हुए हैं। उनके नाटकं मे प्रस्तावना होती है, सूत्रधार रहता है श्रौर रूप शिल्प का सारा विधान अत्यन्त सरल होता है । श्रौर इन देशों के निर्देशक प्रदर्शन-कला में जो नए प्रयोग कर रहे हैं वे हमारी प्राचीन परम्परा के निकट हैं । रूस में टालस्टाय का !त०८0८ और कधा & २८९८८ का नाटकीय रूप प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें सूत्रधार भ्रौर कथावाचक रहता है; हम गोदान को नाटकीकृत करते हैँ तो एक हृश्यबंध श्रौर तीन प्रंकों में उपन्यास को बाँधकर उसके महाकान्योचविव विस्तार कोनष्ट कर देते हैः। ब्रैशट के नाटक 1410106 (0प8९९ मे 15-20 हृदय हैं, श्रौर घटनास्थल रसोई-घर से लेकर लडाई के भोचं तक फले हए है; काव श्रौर स्थान की श्रन्वितियों का उल्लंघन होता है,




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