मूला चार भाग - 2 | Mula Char Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्वादशानुरक्षाधिकारः । +
सेवरानुपरक्षां सेक्षपयन् तस्याश्च फट प्रतिपादयनाहः--
संवरफलं तु णिव्वाणमेत्ति संवरसमाधिसंजुत्तो ।
गिच्चुर्जुत्तो भावय संवर इणमो विखद्धप्पा ॥ ५३ ॥
संवरफलं तु निवाणभिति संवरसमाधिसंयुक्तः ।
नित्योयुक्तो भावय संवरमिमं विद्युद्धात्मा ॥ ५३ ॥
रखीका-संवरफटं निौणभिति करत्वा संवरेण समाधिना चाथवा सेवरध्या-
नन संयुक्तः सन् नित्योयुक्तश्च सर्वकालं यत्नपरं मावयेमं संवरं॒विद्ाद्धात्मा
सर्द्न्धपर्दिणः-सेवरं प्रयत्नन चिन्तयति ॥ ५३ ॥
निजरस्वरूपं वितरुण्वन्नाहः--
रुद्धासवस्स एदं तवसा जुत्तस्स णिजरा होदि ।
दुविहाय सा वि भणिया दैसादो सञ्वदो चेय ॥५४॥
द्धाखयस्य यं तपसा युक्तस्य निजंरा भवाति ।
द्विविधा च सापि भणिता देङातः सर्वतश्चैव ॥ ५४ ॥
रीका-रन्द्राखवस्य पिषहितकमीगमद्रारस्येवं तपसा (क
भवति--कर्मशातनं भवति । साऽपि च निर्जरा द्विविधा भणित्टरदिक्षेतः सर्वतश्च `
करमेकदेश्षानिर्जरा सप्रकर्मनिर्जरा चेति ॥ ५४ ॥
देशनिजरास्वरूपमाह;--
संसारे संसरंतस्स खओवसमभगदस्स कम्मस्स।
सन्वस्स वि होदि जमे तवसा पुण णिजरा विला ॥५५॥
संखारे संसरतः क्षयोपहामगतस्य कर्मणः ।
स्वस्यापि भवति जगति तपसा पुनः निर्जरा विपुला ॥५५॥
9 † एककंमैक ` इति प्रेस-पुस्तके पाठः ।
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