आश्रम की बहनो को बापू के पत्र | Bapuke Patra, Ashram ki Bahano ko
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र्षा
मौनवा८ ६-१२-२६
बहनों
मेरे बचनके प्रनुसार सुबह भाप्ता गरके पहला काम
शुम्हें पत्र लिपनंका कर रहा है ।
भमी सात अजनमें पांच मिनट मी हु । भिसत्निमे
तुम सब भभी तो प्रापना-मदिरमें भा रही होगी । जो समप
स्मो भुमका पान करना । जिसने हाजिर होना मंजूर किया
ट षद् भागस्िक् पटनाके सिका हाजिर होती होमी । मम
तो रमणीकृासको गीताजोके अक-दो पमो हमेशा कशानगी
भूबना दी है । परतु तुम भपनी मिच्छाव मनुमार वापम
शुरू कराना । सिगनका मम्पाम कमी न छोषटना । मधर
हमा मुषार्ना ।
मधर यद् म पमे मही पर्म-पालनम मापन-न्प हु ।
पर्मषौ स्मास्यातो हम जो दनोक रोज पाठ किया करते थे मुनम
है । मोर हम तो पर्म-पालत सीसना है। पम परोपवारस है ।
परोपडार मागी दूसरेवा मसला चाहता भौर बरसा ट्रसरेगो संदा
भरना । सिम पदक आारम कण्ते हुम तुम भेग-दसरेके साथ
सगों बतनता-सा र्लहू रंसता सफर टुसम सब दुर्सी होना ।
यह तो बच ही बात हुमी । मुझ पद तो हर हले शान
हे जिगगिम जद पटने अपना पायय बन होने दूं ।
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