गांधी जी | Ghandi Ji

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ghandi Ji by कमलापति त्रिपाठी - Kamlapati Tripathiकरुणापति त्रिपाठी - Karunapati Tripathiकाशीनाथ उपाध्याय भ्रमर - Kashinath Upadhyay 'Bhramar'कृष्णदेव प्रसाद गौड़ - Krishndev Prasad Gaudविश्वनाथ शर्मा - Vishwanath Sharma

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

कमलापति त्रिपाठी - Kamlapati Tripathi

No Information available about कमलापति त्रिपाठी - Kamlapati Tripathi

Add Infomation AboutKamlapati Tripathi

करुणापति त्रिपाठी - Karunapati Tripathi

No Information available about करुणापति त्रिपाठी - Karunapati Tripathi

Add Infomation AboutKarunapati Tripathi

काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर - Kashinath Upadhyay 'Bhramar'

No Information available about काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर - Kashinath Upadhyay 'Bhramar'

Add Infomation AboutKashinath UpadhyayBhramar'

कृष्णदेव प्रसाद गौड़ - Krishndev Prasad Gaud

No Information available about कृष्णदेव प्रसाद गौड़ - Krishndev Prasad Gaud

Add Infomation AboutKrishndev Prasad Gaud

विश्वनाथ शर्मा - Vishwanath Sharma

No Information available about विश्वनाथ शर्मा - Vishwanath Sharma

Add Infomation AboutVishwanath Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
परिवारके छोग आगे-झांगे चल रहे थे.। गुरखा तथा पैदल-सेनाके लोग आरे-आगे राह ठीक करते थे । विड़छा भवनसे राजघाटतक पांच मीलकी दूरी है। सारी राह, पथ, पटरियाँ, चृक्त, घरोंकी छंतें जनसमूहसे परिपूणण थीं । मजुष्यका सागर उमड़ पड़ा था | राह भर छोग पुष्प वर्षेण कर रहे थे । इतनी महती मीड़ दोनेपरर सी 'चारों ओोर शांति थी। केवल थोड़ी थोड़ी देरपर महात्मा गांधीकी जयः की ध्वनि ही सुनायी पड़ती थी । दिद , मुसलमान, ईसाई, पारसी, एंग्छो-इंडियन तथा यूरोपियन सभी इस भीड़में थे । ख्ियोंकी आंखोंसे आंसू निक रहे थे । डाक्टर राजेंद्रप्रसाद भी चधौसे पहुँच गये थे और आचाये कृपालानी भी 1 दिल्छी द्रवाजेके पास शाही वायुसेनाके वायुयानने नीचे 'ाकर पुष्प बृष्टि की और इसी प्रकार थोड़ी-थोड़ी देरपर ऐसा ही होता रहा । सारा वायुमंडल पुष्पोंकी पंखुरियोंसे भर गया था | चार बजकर बीस सिनटपर शव राजघाटपर पहुंचा । छाल किलेके पीछे जमुना पुलके पूरब सरकारी निर्माण-बिभागने बारह फुट लंबा, वारह्‌ फट चौड़ा तीन फुट ऊँचा मंच वनाया था, उसीपर सादे चार वजे अर्थौ रली गयी १ यमुना जलसे चको स्नान कराया गया । पंद्रह सन चन्दनकी लकड़ी, चार मन घी, एक मन नारियलकी गरी श्रौर पंद्रह सेर कपूरसे अन्त्येषटि क्रिया की गयी । वेदिक मंत्रों से पंडित रामघन शर्माने संस्कार आरम्भ किया । अगणित पुष्प सालाएँ अर्थीपर रखी हुई थीं । सबसे पहले चीनी राजदूतने चर्थीपर माला रखी, इसके पश्चात्‌ रोर राजदूतोँने तथा अन्य लोगोंने । ४-५५ मिनटपर देवदास गांधीने दाह- संस्कार किया । लेडी माउण्टवेटन मद्राससे बायुयानसे आ गयीं थीं । शव जल जानेके वाद उसकी राख, लकड़ीका टुकड़ा तथा और शेप वस्तुका छुछ चिन्ह लेनेके लिए जनता प्रयत्न करती रही । सूर्यास्त दोते होते सहात्माजीका शरीर भी जकर राख हो गया । संनिक रक्ताके लिए निय क्त कर दिये गये ये 1 रविवार, पहटी फरवरीके प्रातःकाल अनेक सब्जन तथा तेता राजघार गये । जदो मद्यात्माजी जलावे गये थे वहां पंडित जवाहरलालने माला अर्पित दी | रविवारके दिनिभर दशनके देतु लोगोंका तांता चंधा हुआ था । सोमवारको येदिक संग्रोंफे साथ विधिपू्क डेट घंटे पूजाके पय्वात्‌ मददात्साजीका फूछ एकत्र क्या कन ६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now