पंत और पल्लव | Pant Aur Pallav

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Pant Aur Pallav by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ पंत श्यरीर प्लव एक उदाहरण परौर- 'पलवोड़ा चाल लट्र, झनानक खपकूर्तोके, प्रसूनों फे दिंग रकफर, सरफती दे सत्वर 1”? --पैंचजी 'पत्नव” के प्रवेश में हम लोगों के समभने के लिये पंतजी ने श्पनी इन पंक्तियों की व्याख्या भी कर दी हे । मेरी समभक में यद्द भाव पंतजी का नहीं, यद्द भी रींद्रनाथ दी का है। पहले को तरदद कुछ परिवर्तन करके इसकी भी पंतनी ने बैसी दी दृत्या की है-- “श्यामल झामार दुइटी कूच मारे मामे तादे फुटिमे पल 1 खेला ले काछे शासिया सष्ठरी चकिते चुमिया परलाए जाये ।”” न्नूरदाद्रनाथ कितने सुर भाव की हत्या की गई है ! पंतजी ने लिया ` है इन्दं इतनी पंक्तियों का भाव, परंतु ररवींद्रनाथ की सौंदये की 'झप्सरा कुछ चोर नवीन नृत्य दिखलाती है । अभी पूर्वोक्त पयय अधूरा है। चहद अंतिम अश इस प्रकार है-- “शरम-विमला छुसुम-रमणी ` फिरात्रे ्रानन शिहरि श्मनि, श्रावेशेते शेपे श्रवश शोइया खसिया पढ़िया जाने ;




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