श्री समरादित्य | Shri Samraditya

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Shri Samraditya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ महाराजा गुण मेन ६ ` पप्र, राजा असह्य शिरावेदना से पीड़ित था, सांरा परि- करार ओर परिजन चिन्तातुर धे | एेसी स्थिनि मे पारणा शक्य नदी था, मै लोर आया । तपस्वरीने धैथे पूर्वक उत्तर द्विया [ थोडी रर म त्वरितगति से राजा गुणमेन शाया और बोला, प्रभु मे बेब्ता में अवेतनसा हो गया था। परिजनवरग ने मेरी चिता में आपका ध्यान नह रक्खा । आपको क्लेश हुञा । अव मुभ पापी का क्या होगा ? , , , 7 + “राजन्‌ 1 संत्ताप न करो) मेरी कोई हानी नही हु! {णे तद्ध हा द्‌ १“ ६ वि ॥ 1 ‡ | म न “अपि पवारो, आपको भोजन करवाने 'से ही मुझे संतोष गा] की = न्‌ भ च „+ ~ (धराज्ञन; मरी प्रतिना अड्गिहै? * 1 .' 1 निराश राजा दूसरी बार के पारणे का आग्रह क दंगित हृदय में नंगर सें लौट आया 1 ` | * [1 ध छ केनः म ॥ | क ॥। राला गुणसन राज्नसभा में तपस्वी के अदूुत सुणा की प्रशसा कर रहा था। आज एक महांतपस्वी को मैं पारणा करवा कर छेताथं होऊर्गा। अभीतो प्क प्ररं का विलम्ब हैं, संपूण तयारी हो गई है । ही. । हर राजा इस तरह से बात कर दी रहा था) कि वहाँ एक गुप्त




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