श्री लालजी महाराज का जीवन चरित्र | Shri Lala Ji Maharaj Ka Jeevan Charitar

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Shri Lala Ji Maharaj Ka Jeevan Charitar by दुर्गाप्रसाद - Durgaprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) , (७ ४२ मकं आर सजा महाराजा मा अपक चरण गल में [शर शान म आनन्द सानन जग | उन पूज्य श्रा का गभारता, अर्‌ द विचारमय गहन सुखघुद्र, अल्प किंतु मार्मिक चेचन योर बिचार ति दिद्धात पर वथा कम केव मे साध्य चिद्ध पर, उनका सभय 7: व झत्खासत, प्रवाह भार उनकां झपूव कायशाक्, बुर उपद्रव स झाए हुए असहझ दुख: भ सन्तप्त हकर पार उतरा ¶ हा उनका विशुद्ध जवन अर उनश्छां चमा भक्मक; तथा पूते सघलता-इन सव बता का स्मरण जन्द पूय र्‌ हमा पृञ्य कष को जवेना के. सव्यता का यथाथ ज्ञेति खचका हया - समक स वसातमा समकाल का्य-चेत्र मे अमसुव् समद्‌ षहा कोनप्र्‌ भा [वी प ट | ४ अभ्रा म} ऊन जगत एक स्वर खे पृथ्यश्नीं का गुखादुकादं करता ह; यही चात उतके सपृणे गरव का साक्षी है., इनका आत्मगोरव छोर इन का आदेश पहचानने लायक शक्ति अपने में संदीं थी, इनकी तञ प्रभा में खड़ा रहने लायक पवित्रता चकते सं नदी थी, इनकी ॥ ८ पस्य की कीमत अपने को. नदी शी) उन पृञ्यश्री के परलोकवास पर्‌ ससू वहात च्धतु दश के 1शरासास का पंदचानना इस बात | स अपन का बधा अबि ह यह्‌ अपना इद भाग्य ऊपर अआसू चहाना अ च्राहिष्‌ 1») ४ 1४1 द नर उच्साह के संचार करने पूज्य : से कुछ वकि सह स्कल 1 ; चारेषरफ झाविश्रान्त विद्दार कर और नियशाका निकन्दन ५




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