विद्यापति | Vidhyapati

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Vidhyapati by शरत कुमार मिश्र - Sharat Kumar Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) छृत्यरलकर (६) में लिखा है कि वे दरिसिंददेव के मन्त्री थे । कर्मादित्य चरडेश्वर के प्रपितामह, सुतरां दरिसिंद के छुल २४ वर्षों के राजत्व काल में चार पीढ़ियों का मन्त्र करना सम्भव नहीं मालूम होता है। चण्डेश्वर ने १३१४ खूष्टादद में नेपाल अभि यान में साफल्य लाभ करने पर अपने शरीर की सौल के चरावर स्वणदान किया था, यह वात उन्होंने अपने दानरमाकर; विवाद्रलाकर और कृत्य-चिन्तामणि में उल्लिखित की है । उनके इृद्यरन्नाकर मे इस तुलादान का जिक्र नदीं ह इसको लेकर जायसवाल ने सिद्धान्त क्या है कि कृत्यरताकर १३१४ -सृष्टाब्द्‌ से - पहले सचा गयाथा (७)! च्रत्यरनाकरमे चर्डेश्वर ने “रति” यदह वतमानकाल व्यवहार करके पिता वीरेश्वर का उल्लेख किया है, किन्ु पितामह देवादित्य के सम्बन्ध मे रासीत्‌ यद अतीतकाल्त लिखशर कना चाहा श इस समय देधादित्य -जीवित नदी थे । १३१४ चृष्टा्द्‌ के पहले चर्डेश्वर के पितामह की मृष्यु होने से १२३२ सृष्टाञ््‌ मेँ उनके प्रपितामहं कर्मादित्य द्वारा मन्दिर स्थापित होना, संभाव्य की समा से बाहर न होने पर भी बहुत दूर दे । सुतरां जिस कारण से वीरेश्वर, गरेश्वरः कं पडेश्वर, रामदत्त मर गोविन्ददत्त मे 'कर्मादित्य के. नाम का उल्लेख नहीं किया है एवं जिस कारण से १३३९ खुष्टाव्द में जीवित मन्त्री का चर्डेश्वर का प्रपितामह होना संभव नहीं सालूम पड़ता, उसी कारण से हावीडीद आम की शिलालिपि में उर्लिखित मन्त्री क्मादिस्य का देवादिस्य के पिता कर्मादित्य से स्वतंत्र व्यक्ति सानना ही युक्तिसंगत प्रतीत होता हैं। ऐसा नहीं मानने से सन्देह होता है कि चिद्यापति के पूव पुरुप मन्त्री कर्माद्स्य और रिश्वर फे पितामह क्मादित्य एक ही व्यक्ति थे वा नहीं एवं विद्यापति वी रेश्वर-चणडेश्वर के वंश के झादमी थे अथवा नदीं (2) | किन्तु इस प्रकार का सन्देह करने से मिथिला के ब्राह्मणों कौ वंशपज्ञी की सत्यता मँ सन्देह करना पढ़ता है। इस प्रकार के सन्देह का अवकाश अल्प है (६) 1०412 08०८ (कबणहपत, सस्या १६८७ | , (७) श्रौदणुडेश्वरमन्त्रिणामतिमतानेन श्रसन्नास्मना । नेपालाखिलशूसिपालजयिना धरमेन्दुदुग्धान्धिना । वारवस्याः सरितस्तटे सुरधुनी सामांदधव्य। शचौ मार्गेमासि यथोक्तपुरयसमये दुत्तरतुलापुरुप: ॥ क सिधिला की दस्तलिखित पोधियों का विवरण, ला खंड, एु० २०३।. के० पी० _ जायसवाल रामनोतिरज्ताकर की भूमिकाः पर० १४। (८) द भरकरार फा सन्देह वखन्तष्केमार चट्टोपाध्याय ने किया दै--^प०लाः क्लप 188 ८८० 708व्‌€ {० ८०प्पर€८६ € विवर ० नतिफ्रवगि सांप घिन ० (ब०तेडडपएवा 09 8८ल्छ्पप्रहः ०८10८ वि वा म06पव वा ५ 18 8 पडा ८०प्रणछा) 10.006 दत विधािट, दिघष्ाबतीछि प्ण० इव४८ (96 (क्ल गाभत्ट्मणणछय 7 1332 4 0, टवसघण 06 ट हर्द हत्वपवसिकलः 0 (वपवल्जषवय प 0 पादरव्‌ व ६1६ 9 5 ० पलप नवे 1१ 1314 4. 0. कण्व फवेड क व्‌ प्ट व लाक ए0लरपि कपपल, पए€ [वणक घना, प0० हा०घप्ेड घुण०्ण भशापंएी हि , 0886 पल वलफ 04 चिट ० विग, 1 कठ 6 द्ण्पलय ० 5968 ग वदवि 38 कमे वद्ठ्ञ्ना ० ककं कपत ० ० (वप्वल्मन्णव (०घ्रधादों भा दि 0200006१ ए ९८5) (म्‌, ह न उदय, 6०&< 35)




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