पर्यावरण अध्ययन | Paryavaran Adhyayan

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Book Image : पर्यावरण अध्ययन  - Paryavaran Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 / सापाजिक विज्ञान : भाग 2 जब शैलें अपक्षय दूवारा एक बार टूट जाती हैं, तब जल, गतिशील हिम, पवन या गुरुत्वाकर्षण इन छोटे-छोटे कणों को एक स्थान से हटा कर दूसरे स्थान पर एकत्र कर देते हैं। इस प्रक्रिया को अपरदन कहते हैं। जैसे ही पृथ्वी का कोई नया क्षेत्र लावे के जमने, हिमानी के पीछे खिसकने या समुद्र तल के नीचे हो जाने के कारण अनावृत होता है, तब अपक्षय की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। परंतु यह स्मरण रखना चाहिए कि अपक्षय तथा अपरदन की प्रक्रियाएँ सर्वत्र तथा सदैव होती रहती हैं। कभी-कभी एक प्रक्रिया दूसरे से अधिक स्पष्ट होती है। जलवायु अथवा पर्यावरण में परिवर्तन के कारण उनकी क्रिया की गति में अंतर हो सकता है। अपक्षय तथा अपरदन को गति इन कारकों पर निर्भर होती है -- ° किसी स्थान का तापमान एवं वर्षा ° वनस्पति आवरण न का ढाल अपरदन को प्रभावित करता दै वर्षा की बूँदें वर्षा की बूँदें ५ 4 „ + | | 1.0 (य ठे (अ) व ^ + तीव्र ढाल के कारण (ब) कौ स्थिति मे अपरदन की गति अधिक तेज होगी।




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