निर्मला | Nirmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेखक की प्रस्तावना । स्त्री-शिक्ता पुरुपा की शिक्ता जितनी ही नही, वल्क उससे विशेष उपयोगी है इस विचार का वर्ग बढ़े श्रीर सुशिक्षित स्त्रियों के प्रन, पराचीन वर्णाश्रम धमे पुनः संस्थापित करने ॐ पुरां के प्रयत्नो से मिलें श्रीर ऐसा होने पर ही हिन्दुओं के साम्प्रतिक सांसारिक धरनेक श्रनिष्ट नष्ट होंगे, स स्वप्न तरंग से प्रेरित होकर विद्वान पाठकों के समन्त यह उपन्यास रखने की श्रनुज्ञा लेता हूँ । वर्णाध्रम धम पूर्वरीत्या पुनः संस्थापित हो श्रौर सम्प्रति प्रथक्‌ प्रथक्‌ वर्णो में पढ़ी हुई उपजातियां श्रपनी श्रपनी जातिर्यो म मिन जथ, तो हिन्दू संसार के कष्ट कम हो जाय इत विपय पर सन्‌ १६१४ में 'सुबर्ण कुमारी” नामक पुस्तक मैंने गुजराती पंच के पाठकों के सन्मुख उपस्थित की थी | उस समय सर चौनुभाई माधवलाल ( वैरोनेट ) प्रोफेसर स्वामीनारायश, प्रभति हिंदू जाति के सांसारिक रूष्टों को दूर करने की इच्छा रखने वाले सज्जनों ने तथा कितने ही. समाचार-पत्रों ने नो इस प्रयत्न पर सददानुभति प्रकाशित की थी, उससे सुमे विश्वास इश्राथाकि वर्णाश्रम धम नष्ट कर देने का उपदेश देने बाले वर्णाश्रम संस्था को वास्तविकं स्वरूप मेँ पुनः स्थापित करने के प्रयत्न में लगे तो मारा सांसारिक उदय दूर नी है । इसमे प्रार्भमे तो केवल जो जो उपज्ातियां पद्‌ गई है, वे श्रपनी मूल जाति मे मिल जाय, यदी प्रयत्न करने का है | जाति कै श्रगुाभ्रों ने उपजाति से, जिसे परजाति कठने में श्राता है, लड़कियाँ ङने चालो पर श्रकुश रक्खा है, वह दूर करना चादविये| दती म धमं हे श्रीर इसी मे उदय | खी दौ शास्त्रदरः: जो दवा३ रखा गया ठ) वह्‌ घम से वपरात गार संध्य दिलों ( चेंडाने के लिये ज्ञाति के सुशिक्धिन युवक को बटियदध होना चाहिये | इससे लड़के लड़कियों की कसी दूर होने फे गतिरिति दर जति के ८ सांसोरिकि उदय के लिये लोकमत के विरुद्ध भव हर उपाय बतनें वालों | 1 ्रान्न' >! ३




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