वर्तमान परिवेश मेन गीता - दर्शन के शैक्षिक निहितार्थों का समालोचनात्मक अध्ययन | Vartaman Parivesh Men Geeta - Darshan Ke Shaikshik Nihitarthon Ka Samalochanatmak Adhyayan

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Vartaman Parivesh Men Geeta - Darshan Ke Shaikshik Nihitarthon Ka Samalochanatmak Adhyayan  by डॉ॰ प्रताप सिंह सेंगर - Dr. Pratap Singh Sengar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(4) उससे भी अधिक आस्था की आवश्यकता है। विज्ञान की चकाचौंध तथा अतिशय बुद्धिवाद ने कहीं न कहीं हमारी उस आस्था पर आघात किया है जो हमारे जीवन जीने की परिस्थितियों के लिए न केवल आवश्यक थी अपितु अनिवार्य भी थी जीवन में बुद्धि के महत्व को नहीं नकारा जा सकता किन्तु जीवन मात्र बुद्धि ओर तर्क के सहारे नहीं जिया जा सकता है क्योंकि बौद्धिक निष्कर्ष अन्तिम है यह भी शत-प्रतिशत निश्चयात्मक रूप में नहीं कहा जा सकता है। अस्तु मानव को आस्था रूपी किसी न किसी प्रकाश स्तम्भ की अपेक्षा तो है ही ताकि जीवन के नैराश्य के क्षणों मे उसे सम्बल मिल सके | संक्षेप में वर्तमान परिवेश तथा परिस्थितियाँ के लिये दार्शनिक दन्द उत्तरदायी हैं| क्योंकि व्यवहार मूलतः: हमारी दार्शनिक मान्यताओं और आस्थाओं का ही तो प्रतिबिम्ब एवं प्रकटन है। मानव के व्यवहार में भटका व तथा विरोधाभास, कथनी तथा ` करनी में वैषम्य आदि संक्रमणकालीन दार्शनिक सोच की सहज परिणति है। : संक्षेप में तात्पर्य यह है कि वर्तमान युग के दार्शनिक झंझावत ने ऐसी परिस्थतियाँ निर्मित की हैं, जिनमें आज का मानव स्वयं को असहाय तथा थका हुआ अनुभव कर रहा है। अस्तु, यह आवश्यक है कि एक समन्वयवादी सोच के प्रति सामान्यजन की आस्था को पुष्ट किया जाये जो वैज्ञानिक सत्यं को स्वीकारते हुये जीवन के उदात्त मूल्यो को अंगीकार कर सके |




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