जैन साहित्य में विकार | Jain Sahitya Me Vikar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पण्डित वेचरदास जी - Pandit Vecharadas Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(ड)
न्तवाद की पचिन्न सरिता में धोने के लिये कटिचद्ध हो ज्ञाना
चाहिये । व्यवहार कुशल व्यापारनियुण लैनसमाजकों भविष्य
में ब्रानेचाछी श्रापत्तियोंके प्रतिकारका श्रमीसे उपाय करकेना
चाहिये । घतिवरप लाखों रुपया धार्मिक मुकदमेवाज़ी में-ब्यय
करने घाली मन्द्रोंकी दीवारों पर मना सोना छिपवाने घाली,
लाखों रुपया रथयात्रामें वहानेवा छी श्रौर श्रसंख्यधन मुनिवे-
शिपोंके लिये लुटा देने चाली जनसमाज ''इकवाल के इस
झेरको विचार पूर्वक पढ़े श्रौर समझे ।
श्रगर श्रव भी न समकोगे तो मिट जाओगे डुनियासे ।
तुम्हारी दास्तां तक भी ते होगी दास्तानोंमें ॥
हिन्दी भाषा भापियों को एसी श्रनुपम .पुस्तक पढ़नेका
सौभाग्य प्राप्त होगा, इसके लिये भ्रनुवादक मददीदय धन्यवाद
के पात्र हैं ।
पहाड़ी -घीरज, दिल्ली |.)
ज्येष्ठ कृष्णा ४ थी० नि० सं० ध्न |
झुयाध्याप्रसाद गोयलीय “दास”
नन = = जी = न ज पलक ना कि कण कर अगर पारा बन हनन ज
१. पक्तपतो न मे चीरे, न द्वेः कपिलाप्रिपु 1
युत्तिमदहचनम् यस्य, तस्यका्यः पगि्रहः॥
--धीहरिमिद्रथ्रि ।
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