जैन कथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन | Jain Kathaon Ka Sanskritik Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हमारे सामने आते है उनका चिन्तन एक एेसा समाज शास्त्रीय दशन प्रस्तुत करता है, जो देश ओर कार क। ५।५।५
से परे हैं । मानव मात्र के लिए है। सारे विश्व के लिये है ।
भगवान् महावीर के च्चिन्तन का अध्ययन अब इस दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए । विश्व के दाशनिकों
के चिन्तन के साथ महावीर के चिन्तन का अध्ययन करके विश्वं कल्याण के लिए महावीर के चिन्तन का अमृत
प्रस्तुत करना चाहिए । दूसरी वात वेक्ञानिक सन्दर्भो की है । यह भौर अधिक महत्वपृण है इस विषय मे दौ वाते
ध्यान मेँ रखनी होगी । एक यह कि महावीर की प्चीस सौ वर्षो म व्याप प्रम्पराके साहि्यमे जौ वज्ञानिक
तथ्य उपलब्ध होते है, उनका अध्ययन किया जाये । दूसरे यह कि संद्धान्तिक मान्यताओं का प्रायोगिक अध्ययन
किया जाये । उदाहरण के लिए कुछ विषय ये हैं--
१: लोक की रचना कै विषय मे वातवलय का सिद्धान्त बहुत महत्वपूर्ण है । तीन वातवलय इस विश्व के
आधार वताये गये रै । अन्तरिक्ष की खोज से वातवलयों की मान्यता थोडी-थोडी समझ मे आ जाती है । इसका
पूरा अध्ययन किया जाये तो आन्तरिक्ष यात्रा के नये आयाम खुल सकते है ।
लोक के स्वरूप कौ जो मूलभूत मान्यता थी; संभवतया वाद के व्याख्या ग्र थो मे वह डूब गयी है । इस
कारण हम उसके अध्ययन सूत्र नही पकड पा रहे है ओर हभ लगता है, जेसे ये मान्यतां काल्पनिक रही हो । जब
तक इनका सम्यक् परीक्षण न कर लिया, तव तक इनको झुठलाने की बात मेरी समझ मेँ नही आती ।
२: जीवके विकाश की प्रक्रिया का प्रायोगिक अध्ययन ससार की अनेक शुच्थियों को सुलझा सकता
है। डार्बिन ने विकासवाद का सिद्धान्त प्रतिपादित किया था । हमारे यहाँ निगोद से लेकर मोक्ष तक की विकास
प्रक्रिया का विधिवत वर्णन किया है ।
इसका अध्ययन डार्विन के सिद्धान्त तथा अन्य नवीन खोजो के साथ तुलनात्मक दृष्टि से अपेक्षित है ।
क्मबन्ध की रासायनिक प्रक्रिया का अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है । स्निग्ध और रुक्ष कर्म पुझ
पद्गल्लौ का वन्ध किस प्रकार होता है ? किन परमाणुओं का आख्व होने के वाद भो वन्ध नहीं होता वधे
हुए कम परमाणुओ की निजरा किस प्रकार होती है; इत्यादि का अनुसन्धान होने पर कई नये तथ्य उद्घादित
होगे ।
४: कर्म सिद्धान्त में जो गणितीय सामग्री है; उसमें आधुनिक गणित सिद्धान्त की सबसे जटिल
'सेट्थ्योरी” के समाधान की सामग्री उपलब्ध है । इसका अध्ययन प्रायोगिक रूप में आवश्यक है ।
इसी प्रकार के अन्य अनेक विषय दै, जिनका अध्ययन प्रायोगिक स्तर पर होना चाहिए ।
उपयुक्त दोनो प्रकार से अर्थात् समाजशास्त्रीय टष्टिकौण से तथा प्रायोगिक रूप मँ महावीर के चिन्तन का
अध्ययन परम्परागत ढंग की पाठशालाओं; विद्यालयों या साहित्यिक अनुसन्धान के लिए स्थापित संस्थानों मे
संभव नही है । मानविकी तथा चिन्ञान के निष्णात ओर निष्ठावान् अध्येता तथा सिद्धान्तौ के सच्चे ज्ञाता जब
सम्मिलित रूप से इस दिशा मेँ प्रदत्त होगे तभी इस प्रकार के अध्ययन सम्भव है )
मे इस वाते को वर्षों से कहता आ रहा हूँ । आचाय हुलसी जी ने जव जन विश्व भारती की स्थापना
की वातत प्रारम्भ की थी तव उनके समक्ष भी मेने यह वात रखी थी । वस्वई में महावीर निर्वाण शताब्दी के लिए
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