ऋग्वेद सरहिता (भासा भास्या)भाग ४ | Rigved - Sanhita (bhasa Bhasya) Part -vi

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Rigved - Sanhita (bhasa Bhasya) Part -vi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ १३ ) पिक्त करना 1 तेजस्वी पुरूप का अभिषेक करना चाहिये 1 ( २ >) क्षमा- शील राजा के अन्न जर के आश्रित प्रजाजन । ( ४ ) उत्तम राजा ओर प्रबन्धक के कत्तव्य, प्रजापालन ओर वर्धन 1 (५) अभिपिक्त होकर उसी प्रभाव ओर बरक द्वारा पवित्र पद्‌ की प्राक्ि। (प° ११७-११८) सू० [ ५२ ]--पचमान सोम । शासक ,और प्रजाजन के परस्पर कर्त॑व्य । वह वर-शक्ति वडावे । ।( ३ ) विजेता का राज्याभिषेक । ( ४ ) वहुतसो के चुनने पर प्रधान पद की प्राप्ति । ( ५) उसका कव्य छद व्यवहार का चलाना है । ( प° ११८-१२० ) सू° [ ५३ ]-सोम पवमान । सेनापति के कर्भ्य । प्रजा-सष्द्धय्थं वरुवान्‌ राजा की स्थापना । ( प्र० १२०-१२२ ) सृ° [ ५४ [पवमान सोम । प्रभु से ज्ञान प्राप्ति । प्रयु सूर्यवत्‌ तेजस्वी, सर्वद्रष्टा, एवं सूयंवत्‌. सात प्रकृतियो में राजा की स्थिति 1 (३ ) सर्वोपरि प्रभाव एवं सर्वोपरि राजा । खू० [ ४५ ]--पवमान सोम । प्रजा के प्रति राजा के सत्‌ कत्तव्य ! पक्षान्तर में परमेश्वर से प्राथनाएं 1 राजा के कर्तव्य, उत्तम आसन पर स्थिति, प्रजा को नाना सम्पदा का देना ओर श्ल्रु-नाश् 1 (प्र०१२२-१२२) सू° [ ५६ |--अभिषेक्य के करन्य । पवमान सोम। ( प्र ९२२-१२३ ) सृ° [ ५७ )--पवमान सोम 1 मेघवत्‌ श्रासक के कर्चव्य । दा ४३ न दमन, सवसाक्षी, सव को सन्मागे दिखाना आदि अनेक कर्चव्य ! ( पृ० ५२.५२६ ) सृ० [ ५८ [पवमान सोम । प्रभु की चाणी द्वारा उपासना । उसदे सस्त फेश्वयं 1 ( प° १२६-९२७ )




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