पटटावली प्रबन्ध संग्रह | Pattawali Prabandha Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
418
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज - Acharya Shri Hastimalji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4
:( ९१)
जाते हैं । इन तीनो की पट्टावलिया मल गुजराती लोका की परम्परा से मिलती हुई
हैं। पर नागौरी लोका गच्द जो स० १५८० के समथ हीरागर श्रौर ऋपि रूपचन्दजी
से प्रकट हुमा, उसका सवन्व गुजराती लोका की पट्टावली से नही मिलता । यहां पर
मुख्य रूप से नागौरी लोका प्रौर गुजराती लोक के मोटी पक्ष श्रौर नानी पक्ष वी
पट्टावलिया प्रस्तुत की गई हैं । अन्य भी गद्य एव पद्य मे लोकागच्छ की पट्टावलिया
प्राप्त होती हैं, पर उनका समावेश इनमे हो जाता है । सफलित ७ पट्टावलियो का
श्रन्तरग दशन इस प्रकार है.-- हि
(१) पहली पट्टावली “पट्टावलों प्रवघ” में ऋषि रघुनाथ ने नागोरी लोका
गच्छं की उतत्ति से १६ वी सदी तक का सक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है । रचनाकाल
के & वषं वाद ही मुनि सतोपचन्द्र ने इसको , प्रतिलिपि तैयार की । मापा अ्रधि-
कान शुद्ध एवं सरल है । पट्टावलीकार ने २७ वे पटुघर देवधिंगणी तक का परिचय
देकर २८ वे चन्द्रसूरि, २६ वें विद्याघर काखा के परम निग्नन्य समतभद्र सुरि श्रौर
३० वें घमंघोप सूरि माने हैं । घ्मंघोष सुरि ने घारा नगरी मे पवारवश्षीय महाराज
जगदेव ग्रौर सूरदेव को प्रतिवोध देकर जेन वनाया , । श्रत इनसे घमंघोप गच्छ -प्रगट
हुम्रा । घमंघोष सूरि के वाद ३१ वें जयदेव सूरि, ३२ वेंश्रौ विक्रम सरि, श्रादि श्रनेक
प्राचार्य हुए । सवत ११२३ मे ३८ वें परमानन्द सूरि हुए 1 इनके समय स० ११३२
मे सुखझ की पारिवारिक स्थिति क्ोण हो करो थी 1 गुहू ने उनको नागौर. जाकर
वसने कौ सलाह दी श्रौर काकि नागौर मे तुम्हारा वडा भाग्योदय होगा] गू
के वचन से सूरवक्लीय वामदेव ने स० १२१० को साल नागौर मे प्राकर वास किया 1
हा उनको वडी वृद्धि हई 1 स० १२२९१ के वपं सघपति सतीदास के यहां ससाणी
कुल देवी का जन्म हुमा श्रौर सं» १२२६ मे वह मोरव्याणा नाम के गाव में भ्र तंघान
हो गई। स० ११३२ मे सूरवशीय मोल्हा को स्वप्न में दशंत देकर देवी पुतली - सूप
से प्रकट हुई । मोला ने कुल देवी का देवालय बना दिया । यही सुराणा को कुलमाता
मानी जाती है 1
४०्वे पटुधर उचितवाल सुरि से स० ११७१ मे ध्मंघोष उचितवाल गच्छं
हुमा । इनके प्रतिवोघ पाये हुए श्राज श्रोस्तवाल कहे जाते हैं । ४१ वे प्रौढ सूरि
से स० १२३४ मे घर्मघोष पूढवाल शाखा हुई जो श्रमी पौरवाड नामसे कटो जाती
दै । ४३ वें नागदत्त सूरि से घमंघोष नागौरी गच्छ प्रगट हुमा । सा० १२७८ मे विमल
चन्द्र सूरि से दीक्षा लेकर इन्होंने क्रिया उदार किया, शिथिलाचार का. निवारण
किया 1 स० १२८४ के वै्ञास शुद ३ को इन्होंने श्राचायें पद प्राप्त किया । इन्ही से
नागोरी गच्छ की स्थापना होती है । ५६ वें पट्ट पर शिवचद्र सुरि हुए । रा० १५२६
User Reviews
No Reviews | Add Yours...