धर्मबिन्दु टीका | Dharmabindu Teeka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ बास्तवरें प्रतिष्टित ऋरनेके लिये यह सुद्दावना समय सह शुमाना | * वे कृवि होकर शूने छे * भगवन्‌ 1 धर्मकरा दर कया वेदिक धर्मके और जैनपर्मके परम क्या सतर दै ४ भाचार्मजीन समाधान च्या “ वत्स सकमपृत्तियाडे मनुष्यकों धर्मके फटस्वरूप स्वर्मकी प्रमि होनी है सौर निष्काम्रतिबाडिकों ५ भवविरह › यामि समार सैव होवा ई। जैनर्म भपपिरदकय म्भ दिखाता है 17 उनको अपनी प्रतिज्ञाका स्मरण हो आया. वे उल्दप्ते निद्ठां उरे ५ मगवन्‌ 1 सुते * भवविरदद * चाहिए । ” झाचार्य मदाराजने फटा वस] श्रमणव्वके मिना“ भरविष्ट ' भरा नदी हो स्ता, द्यि प्रथम श्रमणमार्ग अंगीकार करना चादिषु । श्रमणत्यफा स्वीकार और अध्ययन! बस, तंत्र कया था | हरिमडने उसी बख्त जैन सूनि होनेका निश्वय किया लौर दीक्षाका अमग बडे समारोदक साथ पूर्ण हुआ ! कनेतर विद्वानों-उनके पराजित यादी पटितगण भी भते दमे उछि हाट कर्‌ आश्र्वयुग्य हो ॐ । जैनधर्मऊ धिवि यह प्रयंग कैसा खद्भुत होगा जिसका अनुमान पाठररी सहयमें ही हो सकता है। उनके जीवनके यह्‌ मातिपूर्ण अध्यायके मगछ चिट्स्प थी- याकिनी महचराकों उन्दानि अपनी धर्मज ननी के स्वरूप स्पीकार किया। उह्दोने अपनी इतियोंमें सुदको ' याकिनी मदचरायूनु ” रूप उस शक्षरदेदको चिरस्मरणीय पना कट्‌ मानों उनके उपकाएका चदय शुकाया है!




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