धर्मबिन्दु टीका | Dharmabindu Teeka
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
516
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
बास्तवरें प्रतिष्टित ऋरनेके लिये यह सुद्दावना समय सह शुमाना | *
वे कृवि होकर शूने छे * भगवन् 1 धर्मकरा दर कया
वेदिक धर्मके और जैनपर्मके परम क्या सतर दै ४
भाचार्मजीन समाधान च्या “ वत्स सकमपृत्तियाडे मनुष्यकों
धर्मके फटस्वरूप स्वर्मकी प्रमि होनी है सौर निष्काम्रतिबाडिकों
५ भवविरह › यामि समार सैव होवा ई। जैनर्म भपपिरदकय म्भ
दिखाता है 17
उनको अपनी प्रतिज्ञाका स्मरण हो आया. वे उल्दप्ते निद्ठां
उरे ५ मगवन् 1 सुते * भवविरदद * चाहिए । ” झाचार्य मदाराजने
फटा वस] श्रमणव्वके मिना“ भरविष्ट ' भरा नदी हो स्ता,
द्यि प्रथम श्रमणमार्ग अंगीकार करना चादिषु ।
श्रमणत्यफा स्वीकार और अध्ययन!
बस, तंत्र कया था | हरिमडने उसी बख्त जैन सूनि होनेका
निश्वय किया लौर दीक्षाका अमग बडे समारोदक साथ पूर्ण हुआ !
कनेतर विद्वानों-उनके पराजित यादी पटितगण भी भते दमे उछि
हाट कर् आश्र्वयुग्य हो ॐ । जैनधर्मऊ धिवि यह प्रयंग कैसा
खद्भुत होगा जिसका अनुमान पाठररी सहयमें ही हो सकता है।
उनके जीवनके यह् मातिपूर्ण अध्यायके मगछ चिट्स्प थी-
याकिनी महचराकों उन्दानि अपनी धर्मज ननी के स्वरूप स्पीकार किया।
उह्दोने अपनी इतियोंमें सुदको ' याकिनी मदचरायूनु ” रूप उस
शक्षरदेदको चिरस्मरणीय पना कट् मानों उनके उपकाएका चदय
शुकाया है!
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