व्यक्ति और संघर्ष | Vyakti Aur Sangharsh

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Vyakti Aur Sangharsh by निरजनलाल गोयनका - Niranjan Lal ji Goenka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के अ शक अर नि सराप्जन्ध्थास्व छठी पव्क छत्टी-स्त्री नकस्सी मे. छः शक हमार भारादप विध्यमदल का एक दोटानना भूगग्ड है। या मूरारद्र पई परिपियों में विभन है। छरीए काए में देशी एवं उपगिपरों हे रा पिगल हाथ पट घाररों हे म्रणदा पागर्जादि शयादि को स्स ऐसे का पसी भूमि को श्रेय है । तयब्यातु वृद्ध, घारर, रामानय, याठनागाएँ, भावाय, नागफ, स्वास रामदास घियाजी, महर्षि दयानन्द, महात्मा गांगी, सामह्ण परमटस, स्वासों दिपेरागर स्वामी रामपीवे, स्वीस्वपाय टेंगों, लरपिस्द पघोप इ्शाडिन्टर्याडि पुष्य-ध्लोफ महान ब्त्माणों ने धम भूमि पर मस्म रोकर कषपगें गुणों से धसकों सेजोने का श्रेय चूडा है सी भूगग्ड का एवं लनूठा अश राजस्थान है । राजस्थान दाद क्षपने-लापमें णुक दनिहाप है। पस धदद के सुमने मात से ऐसा प्रपित होने लगना है मानों यही राजानों यानी घत्रियों छे रहने का स्थान हो, पर हो । हमारे वा'द्भमय में क्षत्रिय और राजपूत पर्याययाची धाब्द हैं । हमारी वर्ण-प्यवर्या के अनुसार नपने अधीन भू-भाग की रक्षा का भार इन्हीं के हाथों में सौपा गया था। ये हमारे रक्षक थे, न कि आज की परिभाषा के अनुसार घोषक भोर घासंफ । ये धोपक और घामफ नहीं थे, प्रजा के रक्षक एवं सेवक माप थे । इनके ऊपर एक जवदंस्त मकुध श्राह्मण-वर्ग का था, जो कि इनको निर्टिप्ट परिधि के घाइर नहीं व,




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