पुरुषार्थ | Purusharth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45 MB
कुल पष्ठ :
456
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'काम' के अथे-पूणा पर्याय १८६
काम के अन्य श्रथेपूणं नाम |
कदूप --- काम के और मी नाम संस्कृत में हैं । बहुत अथेपूर्ण हैं ।
(मम्यक् कृताः “अच्छी बनाई हुई”, “संस्कृत भाषा ऐसी ही है । पर निरुक्त
शास्त्र का प्रयोग, जिस से प्राचीन अ्रर्थग्म शब्दों का निर्वचन, शध्या-
रशास्त्र को सहायता से हो, प्रायः उठ सा गया है । एक नाम, काम
बन जाता; (मनुष्य-दष्टि से; इंश्वर-दृष्टि से, रावण आदि का अतिपाप भी,
अ-साक्तात्, अप्रत्यक्ष, रूप से, सानव जाति का, दूर जा कर, कल्याणकारक
हुआ; यह इश्वर के, परमात्मा के, द्र हर-मय, पुख्य-पाप-मय, जगन्नाटक
का, अ-वारणीय नियम ही है ); ऊपर से नीचे गिरना सहज है; नीचे से
ऊपर चढना कठिन; इसके विशेष श्राध्यात्मिक हेतु है । सच्चे प्रेम से,
विवाहित भाय -भत्ती के, परस्पर मैथुनीय-च्रालिगन मे भी, दोनो ओर,
सूच्म श्रभिमान की ( जिसी का घनोभाव, राजस घोर-भाव. दप, गव,
है ), मात्रा रहती ही दै; उसका श्रास्वादन, लीला से, बनावटी, कत्रिम
खेलः के भाव से, अपने उपर आरोपित नाटकीय प्रदर्शन से, परस्पर
एक दूसरे पर, पर्याय ( पारी-पारी ) से मिथ्या 'बलात्कार' कर के, होता है;
और उस से, परस्पर प्रेम, परस्पर रमण (एक दूसरे मे 'रमना', 'रीकना”),
` श्रान्द, बढ़ता है; किन्तु, यदि यह बलास्कारः, मिथ्या खेल के स्थान मे
वास्तविक ( 'जिना बिल-जब्र'), और परस्पर के स्थान पर यक-तरफः), हो
जाय, तो घोर, पापिष्ठ, श्रीर् श्रति अनर्थकारी होगा, प्रेम प्रीति का सर्वथा
नाश करेगा, तीत्र द्रोह और हीनता की आग जलावैगा, जीवन को विष-
मय करेगा, मानस और शारीर तीच्ण श्राधि-व्याधिर्यो कौ जन्म देगा |
इस सब विषय के विस्तार की--'अभिमान” के पुरुषरूप, 'सैडिज _म
और स्त्रीरूप, 'मेसोचिज_म', आदि की--चचा, 'दि सायंस श्राफ दि
इमोशन्सू” में की है | पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने, यूरोपीय भाषाओं में लिखे
कियेट्री' ( कामादिजनित मानस विक्रिया, उन्मादादि ) के शास्त्र
के अ्रन्थों से इस विषय का प्रतिपादन बहुत विस्तार से किया है--कि
यद क।मप्तम्बन्धो दपं अ्रमिमान, कैमे कैसे घोर बिकृत बीभत्स भयानक
कर ख्पध(रण कर लेता हे, यहा तक किं मेथुन मे हिंसा तक कर डालता
है । वात्स्यायन ने भी कुछ थोड़ी चर्चा इस की की है, जिस का स्थात्
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