पुरुषार्थ | Purusharth

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Purusharth by डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'काम' के अथे-पूणा पर्याय १८६ काम के अन्य श्रथेपूणं नाम | कदूप --- काम के और मी नाम संस्कृत में हैं । बहुत अथेपूर्ण हैं । (मम्यक्‌ कृताः “अच्छी बनाई हुई”, “संस्कृत भाषा ऐसी ही है । पर निरुक्त शास्त्र का प्रयोग, जिस से प्राचीन अ्रर्थग्म शब्दों का निर्वचन, शध्या- रशास्त्र को सहायता से हो, प्रायः उठ सा गया है । एक नाम, काम बन जाता; (मनुष्य-दष्टि से; इंश्वर-दृष्टि से, रावण आदि का अतिपाप भी, अ-साक्तात्‌, अप्रत्यक्ष, रूप से, सानव जाति का, दूर जा कर, कल्याणकारक हुआ; यह इश्वर के, परमात्मा के, द्र हर-मय, पुख्य-पाप-मय, जगन्नाटक का, अ-वारणीय नियम ही है ); ऊपर से नीचे गिरना सहज है; नीचे से ऊपर चढना कठिन; इसके विशेष श्राध्यात्मिक हेतु है । सच्चे प्रेम से, विवाहित भाय -भत्ती के, परस्पर मैथुनीय-च्रालिगन मे भी, दोनो ओर, सूच्म श्रभिमान की ( जिसी का घनोभाव, राजस घोर-भाव. दप, गव, है ), मात्रा रहती ही दै; उसका श्रास्वादन, लीला से, बनावटी, कत्रिम खेलः के भाव से, अपने उपर आरोपित नाटकीय प्रदर्शन से, परस्पर एक दूसरे पर, पर्याय ( पारी-पारी ) से मिथ्या 'बलात्कार' कर के, होता है; और उस से, परस्पर प्रेम, परस्पर रमण (एक दूसरे मे 'रमना', 'रीकना”), ` श्रान्द, बढ़ता है; किन्तु, यदि यह बलास्कारः, मिथ्या खेल के स्थान मे वास्तविक ( 'जिना बिल-जब्र'), और परस्पर के स्थान पर यक-तरफः), हो जाय, तो घोर, पापिष्ठ, श्रीर्‌ श्रति अनर्थकारी होगा, प्रेम प्रीति का सर्वथा नाश करेगा, तीत्र द्रोह और हीनता की आग जलावैगा, जीवन को विष- मय करेगा, मानस और शारीर तीच्ण श्राधि-व्याधिर्यो कौ जन्म देगा | इस सब विषय के विस्तार की--'अभिमान” के पुरुषरूप, 'सैडिज _म और स्त्रीरूप, 'मेसोचिज_म', आदि की--चचा, 'दि सायंस श्राफ दि इमोशन्सू” में की है | पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने, यूरोपीय भाषाओं में लिखे कियेट्री' ( कामादिजनित मानस विक्रिया, उन्मादादि ) के शास्त्र के अ्रन्थों से इस विषय का प्रतिपादन बहुत विस्तार से किया है--कि यद क।मप्तम्बन्धो दपं अ्रमिमान, कैमे कैसे घोर बिकृत बीभत्स भयानक कर ख्पध(रण कर लेता हे, यहा तक किं मेथुन मे हिंसा तक कर डालता है । वात्स्यायन ने भी कुछ थोड़ी चर्चा इस की की है, जिस का स्थात्‌




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