सुमनान्ज लि | Sumananjali

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Sumananjali by अनूप शर्मा - Anoop Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ कीर्त्‌ ओर को्खरिज इस प्रकारके कवि हैं । दूसरी श्रणीके वे रोमेण्टिक कवि होते हैं जिन्ह हम प्रकृतिके कवि भी कह सकते ह । अपने आसपास रहने- वाले, नित्य प्रतिके जीवनके संसर्गमं आनेवांल साधारण व्यक्तियों और प्राकृतिक टद्योंको लेकर कविता करनेमें उन्हें आनंद आता है। अंग्रेजी भाषाके कवि वडस्वथकी गणना इस दृसरी कक्षामे की जाती है । अनूपजीने भी ^ मेरा भ्राम ' लिखकर इस प्रकारकी कविता करनेका प्रयत्न करिया हं किन्तु कविन तो भृत- कालीन नरेशों और उनके द्वारा बनाई हुई प्राकार-परिखाओंको भूल सकरा ओर न वह वर्तमान राजनीतिक हलचलोंको तथा ग्राम-सुधार-आन्दोलनको ही एक ओर रख सका; ग्रामकी सुन्दरता देखते देखते वह उसकी आर्थिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, तथा नेतिक समस्या ऑ्में उलझ गया | अनूपजी केरे प्रकृतिप्रिय कवि नहीं है । उनमें दोनों श्रणीके गुण-दोषोका सम्मिश्रण पाया जाता दै । हम पहले ही कह चुके हैं कि कविने प्राकृतिक वर्णनों का सफलतापूर्वक चित्रण किया है परन्तु यह वर्णन उसके लिए कारण-मात्र है, उसकी अनुभूति जगानेका केवल साधन है; यहीं कारण है कि अनूपजीको प्रधानतया प्रथम श्रेणीका ही रोमेण्टिक कवि माना जा सकता हं | क्योकि, उनम प्रकृति-पेम गोण रूपसे पाया जाता है ओर उनकी कल्पना-रक्ति उन्हें निश्चेष् रहकर अनुभूतिका आस्वादन नहीं करने देती । जहाँ जहाँ कविने ऐसी सम्मिश्रित शैलीमें लिखनेका प्रयत्न किया है उसे पूरी सफलता मिली है। उसने प्रतिभाद्वारा उन सब विभिन्न प्रत्र्तियोके। इस प्रकार एकाकार कर दिया है कि वे सब सम्मिलित होकर एक विचित्र एकता, उससे भी विचित्र विभिन्नता उत्पन्न कर देती हैं जिससे उनके समूचे चित्रणमें वह सौन्दर्य उत्पन्न हो जाता है जो उसके विभिन्न अंशॉमें नहीं प्राप्त होता है । ८ चित्तोड-दशैन ` जैसी इनी गिनी कविताएँ ही ऐसी हैं कि उनके टुकड़े मूलसे अलग होकर भी अपनी सुन्दरता नहीं खोते । कविका यह रोमाण्टिसिरम स्वाभाविकतासे दूर नहीं है । अपितु कविने स्वाभा- विकता दही कल्पना ओर भावाप्रेगमे रंग कर एक परिवर्तित स्वरूपम प्रस्तुत की है। हम पहले ही कह आये हैं कि कविदारा अंकित किये गए; चित्र स्वाभाविक हैं और उसने उनका अच्छा उपयोग और चित्रण किया । कवि परिस्थितिकी आवश्यकताओंको पहचान कर आगे बढ़ता है और प्राकृतिक वर्णनोंका सझर!




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