लंका - दहन | Lanka Dahan

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Lanka Dahan by चौधरी लक्ष्मीनारायण सिंह - Chaudhari Lakshminarayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७. )) विनती यदै है शेष मनुज भए पै देव, दनुज न द्ोन पाऊँ तो लगि बचाइ ले ॥ ५ ॥। मेरे किये पाप तो सट्दी हैं बद्दी देखो कहा, व्रिनती यहै है जो सुनी तौ सुनि कान दे सुधि करे सुधारो निगमागम निहारो की ग्रपनी बिचार ना विसारो ध्रव ध्यान दें, कोटि जन्म जात ग्रघत्रात समुद्यत तेरे, जान यह जानी बात कहत प्रमान दे, मानो जो श्रनघतौ सावो निज ग्रोक, ना तो, करि करै वित्ोक ज्रिस्व हो तें काढ़ि जान दे ॥ 5 | छूय्यो घन घाम श्रौ ग्रराम बिसराम छूय्यो छूव्यों कुल काम विधि बाम के विरोह त, छूट्यो श्रान सान मान ध्यान घ्रूव घंघन ते; छूय्यो नेह बंधन सनेह सुख सोदे तैं | म्यो ख्याल खाम जो मुदाम मन मोह्यों करें, ्रूय्यो जाम जाम दाम दाम को सनोहेते, तऊ नहिं छूय्यो श्रभिम्रंतर थिसास तेरो, त्यागि सव पायो एक तोहिं मन मोदे तें ॥ ७ ॥| श्रास रखि तेरिय्रे बिसास यह जी मे कियो, बखत परे. पे तू सहाय आय करिहै, गरोर वहु देवन तँ मेव कहु राख्यों नाँहि, टेव भरि माख्यो नहि तिनसो अंकरिहै ।




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