गीतिका | Gitika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ छन्दःशास्त्र को अनुर्वतिता की है । माव प्राचीन होने पर मी प्रकाशन का नवीन ढंग लिये हुए ह। साथ-साथ उनके व्यक्तीकैरणं मे एक-एक कला है, जिसका परिचय विज्ञ जन अपने अन्वेषण से आप प्राप्त कर सकंगे । यहाँ मँ उन पर विरेषसरूप से न लिखि सकंगा । वे उसरूप में हिन्दी के न थे, इतना मैं लिखे देता हूँ। जो संगीत कोमल, मघुर और उच्च भाव तदनुकूल माषा ओर प्रकाशन से व्यक्त होता है उसके साफल्य को मैंने कोरिदा की है। ताल प्रायः सभी प्रचलित है । प्राचीन ठंग रहने पर भी वे नवीन कण्ठ से नया रंग पदां करेगी । धम्मार श्राण-धन को स्मरण करते, नयन झरते--नयम शरते ! ” धम्मार की चौदह मात्राएँ दोनों पंक्तियों में है । गति भी वेसी ही । इसके अन्तरे में विशेषता है-- “स्नेह ओतप्रोत ; ; सिन्ध॒ दूर, शशिप्रभा-दुग अथ्॒ ज्योत्स्नानत्रोत ।-- यहाँ पहली और तीसरी पंक्ति में चौदह-चोदह मात्राएँ नहीं हैं, दूसरी मे है । पहली ओर तीसरी पंक्ति मे मात्रा मरने वाले शब्द इसलिए कम हैं कि वहाँ स्वर का विस्तार अपेक्षित है, और दोनों जगह बराबर पंक्तियाँ रक्खी गयी हैं। यह मतलब गायक आसानी से समझ लेता है। यह उस तरह की घट-बढ़ नहीं जैसी पुराने उस्ताद गवयों के गीतों में मिलती है। पहली लाइन की चोदह . मात्राएँ इस तरह पुरी होंगी :-- १२ २ २ २ २ २ १=१४ | | | | | | | सने +ह+ म +त + प्रो + + ओ +त.




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