साहित्यप्रकाश | Sahityaprakash

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Sahityaprakash by पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' Ram Shankar Shukk ' Rasal ' - Pt. Ramshankar Shukk ' Rasal '

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ साहित्यप्रकाश पारिडत्य-पटुता शरीर चातुयै-चमत्कार की उदार करों से श्रीवृद्धि होती तथा काव्य-कला-कोशल पर ५प्रत्यक्तरलक्तं ददो चरि- ता्थं हाता, वाग्बैचित्रय एवं विज्ञान-वैलक्षण्य के वैच्षण्य पर मोलिकता की म॑जुता तथा सूक्ति-सुधा की माधुरी के लिए उपहारों का भंडार खोल दिया जाता । साहित्य-सौन्दयं का समय अब भूतकाल केगाल में पड़ चुका था, ओर अव समयच्मा गया था एेसे कवियों का, जो एक ओर तो अपने आश्रयादर देने- बाले राजपूत राजाओं के रण-कोशल, पराक्रम एवं प्रताप-प्रभाव का विशद वणन अनूटी उक्तियों के साथ करके उन्हें प्रसन्न एवं प्रोत्साहित करते हए सदा के लिए यश-शरीर के साथ अमर करते और दूसरी ओर जनता में वीर-माव एवं उत्साह कौ उमङ्घं भरते हुए स्वयमेव युद्ध-क्षेत्र में अपनी वीरोल्लासिनी कडयों से सैनिकों को उत्साहित कर तलवार के वार चलाते, ओर इस प्रकार देश, राष्ट (समाज) तथा धभ कौ स्वतन्त्र सत्ता श्रीर महत्ता की रक्ता करते । अस्तु, हिन्दी के तत्कालोन कवि काव्य-साहित्य को इसी रूप में ले चले । कारण इसका यही है कि देश एवं जाति की चित्तवृत्ति के ही आधार पर वहाँ का साहित्य सदेव समाधघारित होता है। जब जहाँ जैसी चित्तवृत्ति का प्राधान्य एवं प्राबल्य या प्रचार-प्राचुयं हाता है तभी वहाँ तद्नुकरूल साहित्य रचा जाता हुआआ देखा जाता है। सादहित्य-विधाता लोग देश-काल से सदेव प्रभा- वित होते है, यद्यपि वे अपनी प्रतिभा के प्रभाव से देशकाल के भी प्रभावित क्रिया करते है, किन्तु यह गोण रूपमे दही होता है!




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