आचार्य हजारिप्रसाद द्विवेदी व्यक्तित्व और कृतित्व | Aachary Hajariprasad Dvivedi Vyaktitv Aur Krititva
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कुमारी पी॰ वासवदत्ता - Kumari P. Vasavadatta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन और व्यक्तित्व ं ६
उनके चाचा पं० बांकेविहारी दवे मैथिलीशरण गप्त जी के प्रेमी थे ।
उन्होंने आचायं जी को बाल्यकाल में भारत भारती, जयद्रथवंध, रदाया था ।
उनके स्कूल के हेडमास्टर पं० महेन्द्र पांडे, 'जयरघुवंध वनज वन भानू' भजन
करवाते थे और शिवजी के मन्दिर सें पकड़ ले जाया करते थे । रामचरितमानस
से ही थोड़ी सी साहित्यिक संस्कृति बीज रूप में मिली है । छपी किताब उस
समय वहाँ बहुत कम मिलती थीं परन्तु गांव में आयंसमाज़ के कारण कुछ कुछ
शास्त्राथ॑ और विद्या का वातावरण था । उन दिनों पं० तुलसीराम के दर्शनों के
अनुवाद को पढ़ गए थे । जो भी पढ़ते बड़े ध्यान एवं रुचि से पढ़ते थे । उ पनिषदू
की टीक्राए, महाभारत के कई पाठ पठ् डाले थे । तुलसी रामायण नियमित रूप
से पढ़ा करते थे । पंद्रह सोलह वर्ष की अवस्था में बनारस आये । इनके चाचा
बड़े शास्त्रार्थी थे । उन्होंने द्विवेदी जी को 'लघसिद्धान्त कौमूदी' पुरी याद करवा
दी।वेशुद्ध उच्चारण के साथ रटते थे । आचाय॑ जी ने संस्कृत बड़ी जल्दी पढ़
ली थी । उस समय इनको बिरला छात्रवृत्ति पंद्रह रुपये महीने मिलती थी । पं ०
जगन्नाथ तिवारी जी के पड़ोसी गांव के रहने वाले और संबन्धी भी हैं । वे अंग्रेजी
पढ़ते थे,द्विवेदी जी संस्कृत । कभी कभी वे तिवारी जी से अंग्रेजी पढ़ते में सहयता लेते
थे | तिवारी जी भी बड़े उत्साह के साथ उन्हें इस काम में मदद देते थे । सन्
“१६२७ के बाद से ही आचायं जी की हिन्दी की ओर रुचि एवं झुकाव था । इन्हीं
दिनों आचार्य जी का परिचय आचार्य नत्ददुलारे वाजयेयी जी से हुआ था ।
वाजपेयी जी आधुनिक काव्य के प्रेमी थे । उसी समय से द्विवेदी जी आधुनिक
हिग्दी साहित्य की ओर उम्मुख हुए थे ।
शास्त्राचायं होने के बाद द्विवेदी जी सन् १९३० मे हित्दी अध्यापनं
के हेतु शास्तिनिकेतन बुलाएं गए । सन् १९३२ में वे बी० ए० को परीक्षा
में बैठना चाहते थे, किस्तु आँखों की अस्वस्थता के कारण बैठ न सके . और
पढ़ना. बत्द कर दिया ।
हिंत्याचार्य के रूप में तो इन्हें दनियाँ जानती है, लेकिन बहू एक
उद्भट ज्योतिषी भीर, इसे कपर लोग जानते हैं । ज्योतिष द्विवेदी जी को अपनी
पृतक परम्परा से ही नहीं मिली, इन्होंने ज्योतिष विषय में शास्त्री और आचाये
परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की हैं । इनके पिता जी की तीव्र इच्छा थी कि वे या तो
ज्योतिषी बने या. फिर वकील बने । वकील तो नहीं बने पर ज्योतिषी से
साहित्यकार कंसे बने इसकी कहानी पृथक है ।
द्विवेदी जी को स हित्यकार बनने मे हरिभौष जी का बडा हाथ -था।
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