आचार्य हजारिप्रसाद द्विवेदी व्यक्तित्व और कृतित्व | Aachary Hajariprasad Dvivedi Vyaktitv Aur Krititva

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Aachary Hajariprasad Dvivedi Vyaktitv Aur Krititva by कुमारी पी॰ वासवदत्ता - Kumari P. Vasavadatta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन और व्यक्तित्व ं ६ उनके चाचा पं० बांकेविहारी दवे मैथिलीशरण गप्त जी के प्रेमी थे । उन्होंने आचायं जी को बाल्यकाल में भारत भारती, जयद्रथवंध, रदाया था । उनके स्कूल के हेडमास्टर पं० महेन्द्र पांडे, 'जयरघुवंध वनज वन भानू' भजन करवाते थे और शिवजी के मन्दिर सें पकड़ ले जाया करते थे । रामचरितमानस से ही थोड़ी सी साहित्यिक संस्कृति बीज रूप में मिली है । छपी किताब उस समय वहाँ बहुत कम मिलती थीं परन्तु गांव में आयंसमाज़ के कारण कुछ कुछ शास्त्राथ॑ और विद्या का वातावरण था । उन दिनों पं० तुलसीराम के दर्शनों के अनुवाद को पढ़ गए थे । जो भी पढ़ते बड़े ध्यान एवं रुचि से पढ़ते थे । उ पनिषदू की टीक्राए, महाभारत के कई पाठ पठ्‌ डाले थे । तुलसी रामायण नियमित रूप से पढ़ा करते थे । पंद्रह सोलह वर्ष की अवस्था में बनारस आये । इनके चाचा बड़े शास्त्रार्थी थे । उन्होंने द्विवेदी जी को 'लघसिद्धान्त कौमूदी' पुरी याद करवा दी।वेशुद्ध उच्चारण के साथ रटते थे । आचाय॑ जी ने संस्कृत बड़ी जल्दी पढ़ ली थी । उस समय इनको बिरला छात्रवृत्ति पंद्रह रुपये महीने मिलती थी । पं ० जगन्नाथ तिवारी जी के पड़ोसी गांव के रहने वाले और संबन्धी भी हैं । वे अंग्रेजी पढ़ते थे,द्विवेदी जी संस्कृत । कभी कभी वे तिवारी जी से अंग्रेजी पढ़ते में सहयता लेते थे | तिवारी जी भी बड़े उत्साह के साथ उन्हें इस काम में मदद देते थे । सन्‌ “१६२७ के बाद से ही आचायं जी की हिन्दी की ओर रुचि एवं झुकाव था । इन्हीं दिनों आचार्य जी का परिचय आचार्य नत्ददुलारे वाजयेयी जी से हुआ था । वाजपेयी जी आधुनिक काव्य के प्रेमी थे । उसी समय से द्विवेदी जी आधुनिक हिग्दी साहित्य की ओर उम्मुख हुए थे । शास्त्राचायं होने के बाद द्विवेदी जी सन्‌ १९३० मे हित्दी अध्यापनं के हेतु शास्तिनिकेतन बुलाएं गए । सन्‌ १९३२ में वे बी० ए० को परीक्षा में बैठना चाहते थे, किस्तु आँखों की अस्वस्थता के कारण बैठ न सके . और पढ़ना. बत्द कर दिया । हिंत्याचार्य के रूप में तो इन्हें दनियाँ जानती है, लेकिन बहू एक उद्भट ज्योतिषी भीर, इसे कपर लोग जानते हैं । ज्योतिष द्विवेदी जी को अपनी पृतक परम्परा से ही नहीं मिली, इन्होंने ज्योतिष विषय में शास्त्री और आचाये परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की हैं । इनके पिता जी की तीव्र इच्छा थी कि वे या तो ज्योतिषी बने या. फिर वकील बने । वकील तो नहीं बने पर ज्योतिषी से साहित्यकार कंसे बने इसकी कहानी पृथक है । द्विवेदी जी को स हित्यकार बनने मे हरिभौष जी का बडा हाथ -था।




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