सत्यार्थ - दर्पण | Satyarth - Darpan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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ससार्थ-दर्षण ११
उनका कोड बुद्धिमान करता लिद्ध नहीं होता, इसलिये का्यत्व विपत्तमें
भी रहनेसे व्यमिचारी दोष प्राता है ।
घास उत्पन्न होना आदि कयै किसो कर्ताके बनाए हुए नहीं
हैं; क्योंकि उनका बनानेवाला कोई भी शरीरधारी पुरुष नहीं है ।
इस भ्रनुमान द्वारा कार्यत्व देतुकी बाधा तयार है ; अतः ध्रकिचित्कर
दोप आता है । |
दूसरे प्रकारसे यों विचारिये--
इंश्वरने जगतकों नहीं वनाया, क्योंकि यदद हलन चलन रादि
क्रियासे शून्य है । जो किसी पदार्थेका वनानेवाछा होता है चदद क्रिया
सहित होता है। ईश्चर जियारदित है. क्योंकि वह सर्चब्यापक हैं। जो
स्थापक होता है उचते दलन चलन आदि क्रिया नहीं दो सकती
है; जेसे-प्राकश । ..
, इश्वर जगता करता नी, क्योकि वह निविकार है । जो किसी
चीजकतो वनाता है वह विकारवाला अवश्य होता है जेखे,जलाहा भादि ।
ईश्वर जगतको नदीं वना सफतः क्योकि वह निराकारे । निराकार
कर्तासि कोई साकार पदाथ नदीं वन सकता $ जैसे श्चाकाणवे । सैः
श्ञांता ईश्वर इस संसारका रचनेचाला नददीं हे, क्योक्रि नास्तिक लोग,
बकरीके गढेमें धन, गुलावके प्रेड़में कांटे वनाना तथा सोनेमें खुगन्ध
न एखना, गन्ने पर फल, चंदन पर पुष्पका न होना सवेश् कतोका
काम नहीं है । दयालु ईश्वर सूष्टिका रचयिता नहीं दो सकता है,
क्योंकि दीन दीन निवेल प्राणियोंको डुगख पहुंचानेवाले दुष्ट लोग
सप, सिंह, बाघ श्रादि जीव संसारमें दीख पड़ते हैं, ईश्वर यदि दयालु
शेता तो पेखा कमो न करता । सवरेशक्तिमान ईश्वर ससारका निर्माता
नहीं है; क्यों कि संसारमें श्रनेक घ्रत्याचार, श्रन्याय और उनके करने
बाले जीव दोख पढ़ते हैं, यदि सर्वेशक्तिमान ईश्वर ससारकों चनाता
तो पेसा कभी न दोने देता । आर्नद्स्वरुप ईश्वर जगतका बनानेवाला
नहीं हो सकता, क्योकि षह पृथे प्रानंदस्वरुपे है.; जो पूरे भानंद्स्वरूप
क
न ।
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