महाकवि अकबर | Mahakavi Akabar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन-चरित आर काव्य की आलोचना ५
्रछ्लाद न दी है. जो तुम्हें चाँद सी सूरत ।
रोशन भी करो जाके सियह-खाना किसी का ।२॥४
वाईस वषं की श्वस्था के दो पद देखिप--
आप से आते हो कब उश्शाकृ-मुउतर की तरफ ।
जज्बे-दिल यह तुमके लाया है मेरे घर की तरफ 1:41
पूछुता है जब काई उनसे किसे है तुमसे इश्क ।
देखते हैं प्यार से शरमा के अकबर की तरफ ॥२॥
इसी अवस्था की पक और गज़ल के कुछ पद देखिप -
१ लिखा हुभ्रा है जो रोना मेरे सुकद्दर में ।
खपाल तक नहीं जाता कभी हँसी की तरफ ॥१॥
कबूत्ठ कीजिए लिल्लाह ताहफृये-दिल को ।
नज़र न झीजिए इसकी शिकरतगी की तरफ ॥२॥
रारीघ्र-खाने में लिस्लाह दो घड़ी बेठो ।
बहुत दिनों में तुम श्राये हो इस गली की तरफृ ॥ दे॥
# इन पदों का अथ गे दिया गपा है ।
पे अपने व्याकुल प्रेमियों की ओर तुम अपने आपसे कब आते हो ।
यह तो मेरे हृदय की आकपणशक्ति हैं. जो तुमको मेरे घर की श्रोर
खींच लाई है । दूसरे पद का अथ स्पष्ट है ।
१ मेरे भाग्य में रोना बदा है इस कारण हसने की श्र मेरा ध्यान
तक नहीं जाता ॥१॥ ईश्वर के लिए दिल की भट ले लीजिए । इसके
टूटेपन पर न जाइए क्यों कि यह झापके प्रेस में ही टूटा है । इस कारण
ब्रापके लिए अधिक उपयेगी हागा ॥२॥ इश्वर के लिए दे घड़ो तो इस
निधन के घर में बेठो । इस गली की श्रोर तुम्हारा श्रागमन बहुत दिनों
में हुआ है ॥३॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...