महाकवि अकबर | Mahakavi Akabar

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Mahakavi Akabar by रघुराज किशोर - Raghuraj Kishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-चरित आर काव्य की आलोचना ५ ्रछ्लाद न दी है. जो तुम्हें चाँद सी सूरत । रोशन भी करो जाके सियह-खाना किसी का ।२॥४ वाईस वषं की श्वस्था के दो पद देखिप-- आप से आते हो कब उश्शाकृ-मुउतर की तरफ । जज्बे-दिल यह तुमके लाया है मेरे घर की तरफ 1:41 पूछुता है जब काई उनसे किसे है तुमसे इश्क । देखते हैं प्यार से शरमा के अकबर की तरफ ॥२॥ इसी अवस्था की पक और गज़ल के कुछ पद देखिप - १ लिखा हुभ्रा है जो रोना मेरे सुकद्दर में । खपाल तक नहीं जाता कभी हँसी की तरफ ॥१॥ कबूत्ठ कीजिए लिल्‍लाह ताहफृये-दिल को । नज़र न झीजिए इसकी शिकरतगी की तरफ ॥२॥ रारीघ्र-खाने में लिस्लाह दो घड़ी बेठो । बहुत दिनों में तुम श्राये हो इस गली की तरफृ ॥ दे॥ # इन पदों का अथ गे दिया गपा है । पे अपने व्याकुल प्रेमियों की ओर तुम अपने आपसे कब आते हो । यह तो मेरे हृदय की आकपणशक्ति हैं. जो तुमको मेरे घर की श्रोर खींच लाई है । दूसरे पद का अथ स्पष्ट है । १ मेरे भाग्य में रोना बदा है इस कारण हसने की श्र मेरा ध्यान तक नहीं जाता ॥१॥ ईश्वर के लिए दिल की भट ले लीजिए । इसके टूटेपन पर न जाइए क्यों कि यह झापके प्रेस में ही टूटा है । इस कारण ब्रापके लिए अधिक उपयेगी हागा ॥२॥ इश्वर के लिए दे घड़ो तो इस निधन के घर में बेठो । इस गली की श्रोर तुम्हारा श्रागमन बहुत दिनों में हुआ है ॥३॥




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