रूस की पुनर्यात्रा | Rush Ki Punaryatra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
275
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुपरिचित मास्को में ११
ने मुझसे कद्दा कि कक्षा में ओठों पर लगाने की लाली की बात मेरे मस्तिष्क में
कभी नदीं आयेगी ।
( पुनश्च -जिस क्षण मै मास्को से प्राग पहुँचा, मेने अनुभव किया कि विरोधा-
भास में माह्को-निवासी कितने शुष्क और फूदढ़ दिखायी देते है । सोवियत वस्त्र
निश्न कोटि के है, उनका रंग फीका होता है तथा कपड़ों की सिलाई की शैली कम-से-
कम दस वर्ष पुरानी है। और रोम, पेरिस अथवा लन्दन की तुलना में स्वय प्राग
भी वेश-भूषा की दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ है । )
सोवियत खाद्य-स्थिति में भी सुधार हुआ है । रोटी और केक, वाइन और
वोडका शराव, शक्कर, कैण्डी, आइसक्रीम, स्वदेभी ओर आयात किये हुए मक्खन,
पनीर और मार्गेरिन तथा ताजी और सुखायी हुई, विशेषतः सुखायी हुई, मछली की
आपूर्ति मौसमी परिवत्तैनों के साथ मारफो में अत्यधिक और अन्यत्र पयोप्त है । फिर भी,
सरकारी पत्र मांस और दूध के अभाव को स्वीकार करते है । ( ३ अगस्त १९५६ को
* प्रवदा * ने लिखा था-* अनेक नगर पहले से ही दूध अथवा दूध से निर्मित होने
वाली वस्तुओं के किसी प्रकार के अभाव का अनुभव नहीं करते । ) न इस तथ्य
को देखते हुए अभाव उल्लेखनीय ही है कि द्वितीय दशाब्दी के अन्त तथा तृतीय
दशाब्दी के प्रारम्भ में सामूदिक कृषि में सम्मिछित होने के लिए बाध्य किये जाने से
पूर्व कृषकों ने अपने मवेशियों को मार कर खा डाला अथवा बेच डाला था । इसके
अतिरिक्त सामूहिकीकरण के बाद से मवेशियों की उपेक्षा ही की गयी है । कोई कषक
स्वयं अपने बछड़े की देख-भाल तो लाइ-प्यार से करेगा, किन्तु क्या वह बे जैसी
सदै रात में उठ कर सामूहिक खेत के किसी बीमार पु कौ सेवा-स्॒रूषा करेगा?
परिणामस्वरूप छंगने वाले आधात की आश्वयजनक रूप से तथा अपने स्वभावानु-
सार उपेक्षा करते हुए, निकिता एस. खुश्चेव ने १९९८ की तुलना में, जब सामूदिक
कृषि का आरम्भ हुआ था, और १९१६ के जार के युद्धकालीन रूस कौ तुरना मे,
मवेशियों की संख्या में कमी के जो आंकड़े सितम्बर १९५३ में प्रकाशित किये,
उनका स्पष्ट अर्थ यह है कि आज प्रति व्यक्ति पशु-उत्पादन कम हो गया है।
इस निष्कर्ष की पुष्टि मास्को के मांस-भण्डारों की खिड़फ्रियो में रखे गोमांस के
टुकड़ों, सत बत्तसों और मुर्गियों की का्ट प्रतिकृतियों से, जो आश्चर्यजनक रूप से
जीबित के सदइय प्रतीत होती हैं और १९३० में में जिनकी सराइना किया करता
था, तथा भीतर की खंटियों, ताखे और रेफ़िजेरेटरों में व्याप्त अभाव से होती है ।
मास्को के कुजनेत्स्की मोस्ट में टहलते हुए मैंने पाइ-साग पर एक भीढ़
देखा लोगों के सिरों के ऊपर से झाक कर देखने पर मुझे एक मेज्ञ दिखायी
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