जैन सिद्धांत सूत्र | Jain Siddhant Sutra

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Jain Siddhant Sutra by ब्र॰ कु॰ कौशल - Br. Ku. Kaushal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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--जैन वाइमय सक्ष्मदृष्टिगम्य है । इसमें जगत्‌ के 'सत्‌'. स्वरूप का जैसा अनादि- निधन विवेचन जीवाजीव-मीमांसा द्वारा प्रतिपादित किया गया है वह ज्ञान सुर्योदय- कारीहै। त विदुषिरत्न ब्र० कुमारी श्री कौशल के द्वारा कुशलतापुर्ण प्रपूत दस. पृस्तक्‌ को पढ़ने से ज्ञानगरिमा का सहज है परिचय मिलता है। जैन वाइमय में नारी का सम्मान धामिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक परम्परा में समान रूप से किया गया है । नारी के योग्य प्रशंता पदों की जैन-संस्कृति में न्यूनता नहीं है और न उन्हें विकास करने का निषेध किया गया है ।* अध्येता लाभान्वित होंगे, ऐसा विश्वास है । वर्षायोग-- ` उपाध्याय विद्यानन्द मुनि घीर संवत्‌ २५०३ दित्ली-ई १-- तपस्वी ऋषि-मुनियो या वंदिक ऋषियों में स्तियों का समावेश नहीं हुआ था । गार्गी, वाचक्नवी-जंसी स्त्रियां ब्रहा-ज्ञानःकी चर्चा में भाग लेती थीं पर उनके स्वतन्त्र संघ नहीं ये । स्त्रियों के स्वतन्त्र संधो की स्थापना बौद्ध-काल से एक-दो शताब्दी पूर्व हुई थी । ऐसा लगता है कि उनमें सबसे प्राचीन संघ जन साध्वियों काथा।ये जैन साध्वियां वाद-विवाद मे प्रवीण थी, यहु बात भद्रा भुण्डलकेदा आदि की कथाओं से भली-भांति ज्ञात हो जायेगी ।'` --लेखक धमनिन्द कोसाम्बी, बौद्ध संधाचा परिकय, प° २१४ ( ६ )




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