भूमंडलीकरण और उत्तर - सांस्कृतिक विमर्श | Bhumandalikaran Aur Uttar - Sanskritik Vimarsh

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Bhumandalikaran Aur Uttar - Sanskritik Vimarsh by सुधीश पचौरी - Sudhish Pachauri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस तरह यहाँ अपने समय को देखने का एक प्रकार का उत्तर-आधुनिक, उत्तर-मार्क्सवादी विमर्श विकसित होता गया है। यहीं उत्तर-सांस्कृतिक विमर्श है। सस्कृति के पुराने अवधारणात्मक वृत्तों से बाहर छलकता हुआ एक ही साथ आर्थिक-राजनीतिक-सामरिक-सामाजिक-सास्कृततिक वृत्त जो एक-दूसरे को काटते-पीटते-बिगाडते-बनाते-चलते-निकलते है। भूमडलीकरण को लेकर इसीलिए यहाँ कोई प्रलापी दृष्टिकोण नहीं बनता । नये तेज गतिमान विश्व की घटनाओं और स्थानीय घटनाओं को भी एक भूमडलीय संदर्भ में देख पाना इसीलिए सभव हुआ कि इस लेखक के लिए भूमंडलीकरण एक ऐतिहासिक प्रक्रिया की तरह ही है ¦ अपने देशकाल को यहाँ इसी नजर से देखा परखा गया है। हिंदुत्ववादी चटृत के सास्कृतिक-धार्मिक विमर्शं हो या उसलामी तत्त्ववादियो कं आतंकवादी विमर्श, चुश के ऑसू हों या कि बामियान के बुद्ध, टीवी के प्रभाव हो या हिदी भाषा के ग्लोबल होते रूप या कि साहित्य व्यवहार के बदलते चेहरे सब इसी तेज रौ मे बहते जगत के सदर्भं मे देखे जाते है । इस बहाव मे किसी क्षण को अचानक पकड लेना उसे उसके चलित आलोक मे कुछ देर के लिए उजागर कर देना और पाठक को उसकं निष्कर्षो के लिए मुक्त करना ही इस लेखन का उदुंदेश्य है। अक्सर ही पत्र-पत्रिकाओं में छपी टिप्पणियो को पढकर इस लेखक को पाठक अपनी प्रायः दो टूक राय देते रहे है । वे पाठ्क सिर्फ हिंदी साहित्य के नही होते, अग्रेजी इतिहास राजनीतिशास्त्र के गंभीर पाठक भी होते है। कई पाठक इन रिप्पणियो में निहित आजाद खयाली और रेडीकल तेवरों को देखकर चकित होते हैं। वे उत्तर- आधुनिकता और उसकी पदावली पर पहले सदेह करते है फिर अचानक उसमें 'सेक्यूलर, जनतांत्रिक और विनिमय की अनिवार्यता के बावजूद एक प्रतिरोध और विकास सभव है” ऐसी आश्वस्ति पाकर अचरज कर स्वीकार भी करते है, कई प्रशसक भी बनते हैं। यह उत्तर-आधुनिकता का रेडीकल विमर्श है। तीसरी दुनिया में उत्तर-आधुनिकता एक रेडीकल प्रत्यय है । कई लोग मानकर चलते हैं कि अंध राष्ट्रवाद या आतंकवाद के नये उभरते विमर्श और नया भूमडलीकरण एक ही सिक्के के दो पहलू है। यह एक भयानक किस्म का सरलीकरण है क्योंकि यह भूमडलीकरण को और अध राष्ट्रवाद को साम्राजी षड्यत्र की तरह मानता है। हम बता चुके है। यह सशयवादियों का तकिया कलाम है। ये टिप्पणियां इस प्रलाप से सर्वथा मुक्त है बल्कि इस प्रलापी थीसिस को समस्याग्रस्त करती हैं । दरअसल भूमंडलीकरण जिस उत्तर-आधुनिक अवस्था को पैदा कर रहा है, उत्तर-औपनिवेशिक राष्ट्रवाद उसका पराजित प्रतिपूरक भी नही वनता है । राष्ट्रवाद क्षयशील प्रत्यय है। भूमडलीकरण एक जटिल ऐतिहासिक विकास की अवस्था और नए अतर्विरोधो से 'ग्रस्त' एवं संचालित प्रक्रिया है । जिन संशयवादियो की आँखो में पुराना मोतियाबिद है वे ही उसे प्रतिपूरक और पूरक कह सकते है | भूमिका भूमंडलीकरण के बारे से * 13




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