नवीन दृष्टि में प्रवीण भारत | Navin Drishti Men Pravin Bharat

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Navin Drishti Men Pravin Bharat by स्वामी दयानन्द -Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 ^ ८ शरारकी प्रणता | ११ ` इृश्या करते हैः - भारतव्प॑की प्रत पृं है, इस कारण ही सनातन “वैदिक धर्स्मकी शिक्षासे वहुदेशव्यापी बौद्धधस्मं॑श्रोर वौद्धधम्पकी. शिक्षासे ईसाई धघरस्म और पुनः उससे ही इस्लाम धर्मकी दृद्धिः होते हप समस्त संसारम नःना धम्मं विस्तृत द्यो गये है । भूतिः 7 की. पूर्णताका प्रत्यक्ष प्रमाण शरीरकी षूरेता दै, शरीरी -पूणताकःः : प्रत्यक्त प्राण मानसिक पूर्णता है और मानसिक पूणंताका ` परत्यक्त प्रमाण घंस्म॑ंकी पू्णता है । घस्में राज्यमें तथा श्ञाध्यात्मिक जगतें: ` मारतवषने जितनी उन्नति की है, धर्मं जगतमे सारतवषेने जितना झस्वेषण किया है, उतनानतो श्रौरः किसी देशने किया दै श्रोर न भविष्यतमे' करनेकी राश है | भारतवषेके विषयमे कहा गयां हे किः ` -मन्ये विधात्रा जगदेकंक्ाननम्‌ । चेनिमित वषे भेदं सुशाभनम्‌ ॥ ४ घममख्यपुष्पाणि फियन्ति यत्र वै । ५ यम . केवल्यरूप चं फर प्रच[यतं.॥ ; मास्तवषं सगचानका वनाया हा रमणीय उद्यान है, जिसमें धर्मरूप पल श्रौर सुक्तिरूपो फल उत्पन्न होता हे । जिस भकार सायन्छ शरोर शिद्पक्मलाकी .उ अरतिखे ्राधिभोतिक उन्नति. समस. ज्ञातीहै, उसी प्रकार ज्ञान और झात्मतत्वविज्ञानकी उन्नतिसे श्राध्या- त्मिक उन्नति समझी जांती है। भाचोनकालेसें सारतीय आयजाति. ध्यात्मिक उन्नतिकी पराकाछा तक पहुंच गई थी, इसको सभी: सिस्पेक्त लोग स्वीकार करते: हैं । जिस गंसीर झात्मतस्वकन गवेष. लाते -प्लेदो ओर सकरेटिस जेस मनीषी थक गये हं ओर स्पेन्लस्ते ः इश्वर तत्व जानना मेंरी बुद्धिखे अतीत .हं एला क दिया है, वहः. पर श्रपनी सदम बुद्धि ओर अतीन्द्रियं दिको दौड़ाकर आत्मतस्वका पूण पयवे करना प्राचीन आय्याकी हो महतो शप्त `




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