मनोवेदना | Manovedana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उसका श्राधा भी यदि आज मुझे मिल जाता तो आज लखपति बन के
दिखला देता। बी० ए० एम० ए० की मिहनत तो वही बनी है पर
मार्केट गिर चुका । लोग तीस पतीस से अधिक बतलाते ही नहीं ।
शरद के पिता की भी अब आँखें खुलीं । बी० ए० एम० ए० को
असली कीमत मालूम हुई । शरद की दरख्वाप्त लिये उसने इस हाकिम
के पास उस हाकिमके पास दौड लगाई, श्रारजू मिन्नत की. पर कों भी
पत्थर का देवता न पसीजा। अब उसे मालूम हुआ बी० ए० एम०
ए० मे कोई सार नहीं, वह केवल गुलाम वनने के साधन हैं । जिन
पड़ोसियों के बीच वहं अपनी घर गृहध्थी बेच शरद की शिक्षा के लिये
हपया भजता और हर प्रकार के कष्ट सहते हुए भी आत्मगोरव का
अनुभव करता, निधन होकर भी सगे सिर ऊँचा रखता; वे भी अब
उस पर ताना कसने लगे । क्यो दादू ! सोचते रहे होगे कर लङ्का पद्
लिख कर कीं कलक्टर हो जायगा । कया हम नहीं श्रपने लड़कों को
इसी तरह पदा लिखा सकते थे ? हम पर रोब जमाने के लिये हमें
निरा काठ का उल्ल सिद्ध करने के लिये तुमने कैसी अपनी गृहस्थी फकी
अब भोगो उसका परिणाम । अरे आज कल के जमाने में रुपया ही
सब कुछ है । रुपया ही शिक्षा है रुपया ही डिगरी । देखो हमारे रोज़गार
अब भी ज्यों के त्यों चल रहे हैं। दो चार रुपया रोज विना किसी
अड़चन के घर झा जाते हैँ । न किसी को सलाम करने जाना पड़ता है
न किसी की लाल पीली अँख देखने को । पढ़ लिख कर बहुत होते
तो कहीं बीस पचीस रुपया के मास्टर या क्लक॑ हो जाते । दिन भर
सिर खाली कराते या कलम धिसते अप्सर हाकिम. होना तो भाग्य
की बात है । शिक्षा की नहीं । अशिक्षेत राज्य करते हैं और
शिक्षित उनकी गुलामी । पड़ोसिझों की बात सुन कर दादू के सिर पर
सैकड़ों घड़ पानी पड़ जाता । बेचारे श्रोतु पीकर रह जाते । किस बल
पर किसी को जवाब देते?
एक दिन गाँव के जिमीदार के दरवाजे पर बेठे हुए कुछ लोग
शिक्षा के विषय में ऐसी ही कुछ बातें कर रहे थे । शरद के ऊपर से ही
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