पुष्प - पराग | Pushp-parag

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Pushp-parag  by महासती पुष्पवती - Mahasati Pushpavati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेनपमं का प्राथतश्व : महिषा | ५ विचारों की वायु से बुप्रयाओं के यादल विद्र गये और सर्वत्र कान्ति वा प्रदाण जगमगाने लगा, मानव-रमाज में सवंघ्र शान्ति को सहर सट्राते लगी । रोहिणेय जंगे दुदंमनीय दस्युराज और अर्जुनमाली जंसे प्रवल हत्यारे उनकी अहिसक श्पन्ति से दयामुति बन गये । अदिसा अतीत बाल से हो मानवता या रांरधषण वरती रही है। जय जीवन में विपत्ति के वादन में इराये, शोक की विजलियाँ चमही और मप की विनीपिक्ा दहने लगी, तय अहिंसा ने प्रनय के सुख में जाने हुए विश्व को चचा लिया । अहिंसा से ही विश्व सुरक्षित रह सता है। अडिसा समस्त प्राणियों का विश्वाम-वान है, क्रीढ़ा-भूमि है बोर मानवता वा संगार है । महिमा क सामय्य लसीम है । इस शक्ति से अनुप्राणित मनुष्य साथ अपनी सर्वागीण उन्नति कर सकता है, अपने जीवन को विकासोन्मुखी घना सकता है । {11




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