अहिंसा धर्म प्रकाश पूर्वार्द्ध | Ahinsa Dharm Prakash Purwardha
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about फुलजारीलाल जैन - Fuljari Lal Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand), (५ ),
1 ... झर्दिसाघमे ग्रहण का प्रयोजन 1 ,
चात्म शुद्धि, की प्राप्ति का, अहिंसा उत्तमद्धार ।
चर [र .~ £ भ
ज् चाल इस माग पर, पाव ,सुक्ख अपार ॥£॥1
= ध्यद्दिसि। पोपक रत्नत्रय
श्रहिसापोपक रत्नत्रय, सम्पर्दर्शन ज्ञान ।
' सष्यारशिमि्नि माक्षमग प्रातम् सक्च निधान ।६।
दि 1 दूपक दोपंत्रय |
हिंसा दूपक दोषन्रय, मिध्यात्व-अन्याय-अम ।
इनके सवही भेद को, तज धं ! निजंएण॒ सक्ष ७॥
,, @-- वेष या पुरान या कुरान, सब पढ़ लीजिये ।
है नददीं अच्छा जुर्म, करना किसी के घास्ते ॥
४“--काटे गला श्रौरौ का, मागे स्लेर झपनी जान की ।
यस कष्य दोगा भला, तेय दूदा कं षास्तं ॥
६--मेर कुरचानी वलि यज्ञ से, खुदा 'मिसता नहों ।
टिक दोज्ञख दै खुला, उन जालिमो के वास्ते ॥
' ७-कर मला दोगा मला,कलज्ञग नही कर जुग 'हे यह ।
प्यारे यद कहता! है स्यामत, तेरे भले के वा स््ते ॥
*..... (न्यामतर्खिद )
- ४-- (१र)श्दधिसा स्वभूनाना जगवि,चिदित अह्मपरमम् ।
ही = + (जेनशासनम् )
पिको, याणका
६-{१) श्र्दिखा धमे को मनदूत करने वाले ये तीनां ही सम्यग्देर्शनादि
(क्षर मोछ के मागि श्र आत्मा के'दुख के खजाने कद्दे गये हैं; '
७-(२) अपने सम्पग्दर्शनादि युकों की रक्षा कर ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...