अहिंसा धर्म प्रकाश पूर्वार्द्ध | Ahinsa Dharm Prakash Purwardha

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Ahinsa Dharm Prakash Purwardha by फुलजारीलाल जैन - Fuljari Lal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, (५ ), 1 ... झर्दिसाघमे ग्रहण का प्रयोजन 1 , चात्म शुद्धि, की प्राप्ति का, अहिंसा उत्तमद्धार । चर [र .~ £ भ ज्‌ चाल इस माग पर, पाव ,सुक्ख अपार ॥£॥1 = ध्यद्दिसि। पोपक रत्नत्रय श्रहिसापोपक रत्नत्रय, सम्पर्दर्शन ज्ञान । ' सष्यारशिमि्नि माक्षमग प्रातम्‌ सक्च निधान ।६। दि 1 दूपक दोपंत्रय | हिंसा दूपक दोषन्रय, मिध्यात्व-अन्याय-अम । इनके सवही भेद को, तज धं ! निजंएण॒ सक्ष ७॥ ,, @-- वेष या पुरान या कुरान, सब पढ़ लीजिये । है नददीं अच्छा जुर्म, करना किसी के घास्ते ॥ ४“--काटे गला श्रौरौ का, मागे स्लेर झपनी जान की । यस कष्य दोगा भला, तेय दूदा कं षास्तं ॥ ६--मेर कुरचानी वलि यज्ञ से, खुदा 'मिसता नहों । टिक दोज्ञख दै खुला, उन जालिमो के वास्ते ॥ ' ७-कर मला दोगा मला,कलज्ञग नही कर जुग 'हे यह । प्यारे यद कहता! है स्यामत, तेरे भले के वा स्‍्ते ॥ *..... (न्यामतर्खिद ) - ४-- (१र)श्दधिसा स्वभूनाना जगवि,चिदित अह्मपरमम्‌ । ही = + (जेनशासनम्‌ ) पिको, याणका ६-{१) श्र्दिखा धमे को मनदूत करने वाले ये तीनां ही सम्यग्देर्शनादि (क्षर मोछ के मागि श्र आत्मा के'दुख के खजाने कद्दे गये हैं; ' ७-(२) अपने सम्पग्दर्शनादि युकों की रक्षा कर ।




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