स्नातक | Esnatak

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Esnatak by आर. के. नारायण - R. K. Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के पेडो की ओर देखती हुई माला फेर रहीं थीं उनके होठों पर राम का पवित्र नाम था मन में आशिक रूप से अपने पति गृहस्थी बच्चे संबंधियों आदि के विषय में विचार चल रहे थे और आँखें तारों भरे आकाश की पृष्ठभूमि में लहराते नारियल के वृक्षों का सौंदर्य निहारने में तल्लीन थीं चंद्रेन की पुकार कान में पड़ने पर वे उठीं किंतु उनके भोजन-कक्ष में पहुँचने से पूर्व ही चंद्रन अपना भोजन समाप्त कर चुका था। उन्होंने पूजा-कक्ष में जाकर माला खूँदी पर लटकाई और देवता के समक्ष दण्डवत्‌ करने के बाद अपनी पत्तल केले का पत्ता के सामने आ बैठीं। तब तक चंद्रन जा चुका था। माँ ने रसोइए से पूछा लगता है उसने ठीक से नहीं खाया ? जल्दी-जल्दी केवल दद्दी और चावल खाकर भाग माँ ने चंद्रन को बुला कर इसका कारण पूछा तो वह बोला मैं सिनेमा जा रहा हूँ। पत्ता है आलू की चटनी तो मैंने खास त्तौर पर तुम्हारे ही लिए बनवाई थी और तुम केवल दही और चावल खाकर चल दिए माँ मुझे एक रुपया चाहिए। माँ ने चाबी का मुच्छा उसकी ओर फेंकते हुए कहा दराज से निकाल लो। चाबियाँ वापस मुझे दे जाना। चंद्रन और रामू सिनेमा घर की ओर चल दिए। रास्ते में एक दुकान पर रुक कर चंद्रन ने कुछ पान के बीड़े और एक सिगरेट का पैकेट खरीदा । रात के शो में जाना कोई सामान्य बात तो थी नहीं कि यंत्रवत्‌ जाकर बैठे पिक्चर देखी और उठ कर चले आये । उनके लिए यह एक ऐसा विशिष्ट अनुभव था जिसका वे पूरी तैयारी के साथ आनन्द लेना चाहते थे। रात्रिकालीन मंद वायु के शीतल झोंकों के बीच आप आराम से इतमीनान से पान-सुपारी वबा रहे हों सिगरेट का धुआँ उड़ा रहे हो। फिर सिमेमाघर में जाकर वहाँ और सिंगरेट पिएँ आधी रात तक पिक्चर देखें और इसके बाद पास के किसी होटल में जाकर गर्मागर्म कॉफी पिएँ तथा एक बार फिर पाने व॑ सिंगरेट का आनंद लें । फिर घर जाकर सो जाएँ। रात का शो देखने का यही तो सबसे अच्छा तरीका था। चंद्रन ने इसका पुरा आनंद लिया और फिर रामू जैसा साथी उसकी उपस्थिति इस आनंद को परिपूर्णता प्रदान कर रही थी। वह सिगरेट पीता पान चबाता कॉफ़ी पीता खूब हास-परिंहास करता चंद्रन को खूब पसंद करता तो उसका मजाक भी उड़ाता उसके साथ झगड़ा भी करता अपने प्रोफेसरी मित्रों और दूसरे लोगों के विषय में चटपटी वर्चाएँ करता। सचमुच उसका साथ चंद्रन के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण था। 19




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