कुत्सित जीवन और दांपत्य विमर्श | Kutsit jivan aur dampatya vimarsh

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Kutsit jivan aur dampatya vimarsh by राम नारायण मिश्र - Ram Narayan Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ दाम्पत्य-विमर्ष , पर अभी तक तो “व्यूरो' ने केवल अविवाहित लोगों की ही दुदशा दिखाई है । झव आगे चलकर वे विवाहित लोगों के भ्रष्टा- चार का भी दिग्दुर्शन कराते हैं । ये कहते हैं कि 'झमीरों; किसानों और मध्यम श्रेणी के लोगों में विवाह अधिकतर या तो भूठी प्रतिष्ठा या घन के लालच के कारण होते हैं। कोई श्रच्छी-सी नौकरी, जायदाद, पुराने व्यभिचार को नीति के श्वावरण से ढकना, व्यभिचार से उत्पन्न होने वाली सन्तति को कानूनन उत्तराधिकारी वनाना श्रौर बुदापे तया वीमारी के समय किसी की सेवा प्राप्त करना; इत्यादि भिन्न भिन्न उद्देश्यों से विवाह किये जाते हैं । कर्भी- कभी मनुष्य व्यभिचार से थककर भी थोड़े संयतरूप में; विपय- भोग का जीवन विताने के लिये विवाह कर लेते हैं। श्रागे चलकर “ब्यूरो' सचे-सचे ममाण देकर यह दिखलाते हैं कि ऐसे विवादों से व्यभिचार कम होने के बदले उलटा और वदता है । इस पतन में वे कृत्रिम उपाय तथा साघन छौर भी सहायक होते हैं, जो व्यभिचार रोकते तो नहीं, किन्तु उससे होने बाले परिणाम को रोक लेते हैं। मैं डस छुःखद भाग को छोड़ देता हूं; जिसमें वतलाया गया है. कि गत २० वर्षों के झ्न्दर परस्री-गमन की कितनी वृद्धि हुई है और अदालतों द्वारा दिये गये तलाकों की संख्या दोगुनी हो गई है! “मनुष्य के समान दी जिया के भी अधिकार होने चाहिएँ--इस सिद्धान्त के अनुसार खियों को विषयमोग करने की जो स्वतन्त्रता दे दी गई है; उसके सम्बन्ध में भी में केवल एक ही दो शब्द कहूँगा! ग्भभात करा देने की क्रियाओं में जो ्रसिद्धि प्राप्त कर ली गयी है; उसके पुरुष या खी किसी के लिये भी संयम के वन्धन की शावश्यकता ही नहीं रह गई । फिर, लोग यदि विवाह के नाम पर दते, तो इसमें आश्चर्य ही कया दे ? एक लोकप्रिय लेखक के ये वाक्य ध्यौः




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