विवेकानन्द शताब्दी - जयन्ती ग्रन्थमाला | Vivekanand Shatabdi Jayanti Granthmala

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Vivekanand Shatabdi Jayanti Granthmala by रमादत्त शर्मा - ramaadatt sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युगावचार श्रीरामकुध्ण ७ देखा और मे मधुर वचन बो, “धुदिराम मै ठग्हारी मकि ते अत्यन्त परतन्न ह| पूत्रकेरूपमं तुर्दारे घरमे भाक्रप्रै दु्हारी शिवा प्रण ष्रूगा ।* प्क व प्क नद खुर गई शीर क्षुदिगम स्तम्भित अौर आनन्द से रोमाचिचि टौ गये | दष अप्रयाश्ितं सोमागय की वात खोचते हुये उनके अनन्द के साघु बद्‌ च्ले। वे सोथने लगे कि बया यह मी संसब दे कि मेरे जेंसे मयण्य दरिद्र ज्राझमण की ऊुटिया में तीनों छोक के प्रसु शीमगवान खर्य पुन के रूप में प्रकट हो नर लीला करेंगे और सारे दिस्व के छोग इस दिव्य लीला के दर्शनों से धन्य और कृता थे दो जायेगे । गयाजी से लौटने पर शुदियप को उनकी घर्मपरायणा पत्नी ने बरताया ङि जन वै शुटिराम) अनुपस्थित थे, एक दिन गाव की घनी छोहारीन .ठे अपनी कुरिया के निकट गुरगियों के शिव मंदिर के सामने बह मातें कर रदी थीं कि सकरपात देनदिदेव महादेव के अंग से सरग ॐ आर, मे एक देवी रहिमि निगत होकर उनके शरीर मे प्रवि दर ॥ बह बेदोश हो गयी । तभी से नगद देवी को यह बोध होने लगा कि नें गर्म रद गया है । उछ्ली समय से सदा अढौकिक दिव्य इृश्य मी « उनके सुपर उपस्थित होकर उन्हें कमी अचम्मित, कभी पुरुकित और आनन्द से विंदल बना देते थे । यद सब सुन कर क्ुदिरम के मन मैं स्देद से रद कि गयाजी में स्वप्त में लो परमपुष्प बी वाणी उन्हीं ने नी थो, वेद स्योने बारी भी] भक्तप्रनर क्षदिराम सौर शरद चपि चरा देवी अपने अराष्य देख श्री रखुदीर के शरणागत सेकर भो मगवान के माविमांव की पविन्नं घडी की! परतीक्लां करने टगे ।__ शदपज बकठंत के सा गमन से झकृति देवी दिव्य झोमा से सुझौभित दो रदी है । सभी दिशाओं में आनन्द की छहरें उठ रही हैं। लता दृ सुश्चोभित ऑम्यदेवी का एकास्त शान्त नफेतन्‌ कोय दी मधुर




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