छूत और अछूत पूर्वार्ध | Chhut Aur Achhut Purvardh

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Chhut Aur Achhut Purvardh by दामोदर सातवव्ठेकर- Damodar Satvavthekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विकयावन्यास । १५ कम अदाद्ध तथा अधिक अदाद मिलकर वास करोड़ हैं । इसका मतलब यही होता है कि सब लोगों की समझ अस्प संख्यावालों की अपेक्षा दोष अजान लोग हीन हैं । यद ज्ञादती हे। यह प्रथा दो हज़ार घर्षों सो बरावर चली आ रही है। इस लिये व श्रेष्ठ जाति और निष्कृष्ट जावि दोनोके नस नस मे मरी हृं हे इस धार्मिक गुलामी का लोगों के मन पर विचित्र परिणाम हुआ हे । उच्च जातियों के साथ समानता के हक्का की भावना तक इन नीची जाति के लोगों में से बिलकुल नष्ट हो गई है । यह बोद्धिक अव- नति । है ओर इसका कारण हे धार्मिक गुलामी इसका विचार आगे. चलकर करेंगे। वतमान समय में समाज में जो छूत अछूत का व्यवहार हे उसके अनसार लोगो के चार विभाग बन सकते हैं । (१) डिस्सित समाज - इस विभाग में चिशेषत नाकरी करने वाले लोग आते हैं तथा बडेबड़े सरदार जागोरदार ओहदेदार बड़े बड़े व्यापारी बडे बड़े अधिकारी और प्रसिद्ध विद्वान आदि इसमें दामील है । (२. मध्यम समाज-- इसमे मामूली मुन्शी, दुकानदार, चित्रकारी या उसीके समान किसी कला विशेष का काम करके पेट पालने वाले अल्पदिक्षित लोग धामिल हे । ( ३ ) अशिक्षित समाज- बिटकुल अनपटे ओर मिहनत का काम करके पेट पालनेवाले लोग इसमें शामिल हैं। माली, कुष्ठा, धाबी, किसान आदि च्छोग इसो विभाग मे आते डे । ( ७ ) अस्पृह्य समाज- इसमे दड, चमार, नाम, परया, अंत्यज, डोम, मेहतर मिरासी आदि ज्ञातियां शामिल हैं । इनमें




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