सुत्तागमे भाग २ | Suthagame Vol 2 Ac 3717
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
60 MB
कुल पष्ठ :
1304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ सुसागमे [ भायारे-
दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे ॥ १७७ ॥ त॑ परिण्णाय सेहायी विदित्ता रोगं, व॑ला
लोगसन्न से मढम परकमिजासित्ति बेमि ॥ १५८ ॥ पटमोदेसो सम्रसो ॥
जातिं च बुद्धि च इह पासे, मृतेहि जाणे पडिलेह मातं । नम्हाऽतिकिओ
पर्मति णत्वा, समनदंसी ण करेति पावं ॥ १७९ ॥ उरम्मंच पासं इह मधिएहि,
आरंभजीती उभयाणुपस्सी ! कामेच मिद्धा णिचयं करेति । संसि्लमाणा पुणरिति
ग्म ॥ १८० ॥ अवि से हासमासज, हना णंदीति मन्नति । अट बालस्म सुंगेणं
वैरं वदति अप्पगो ॥१८१॥ तम्दा-तिविजो परमंतिं णजा, आय॑कदंसी ण करेति पावं
॥ १८२ ॥ अग्गं च मृं च विगिच धीरे, पलिर्ठिदिया णं णिकरम्मद॑सी ॥ १८३ ॥
एस मरणा पुति, से हु दिहभए मुणी, रोय॑सी परमद॑सी विविलजीवी उवसंते
समिते महित सयाजए कालकंखी परिव्वेए ॥ १८४ ॥ बहुं च खलु पावकम्मं
पगडं, स्मि धिं कुव्वहा, एत्थोचरए मेहावी सय्वं प्रावकम्मं ओमनि ॥ १८५. ॥
अणेगध्विन खलु अयं पुरिस, सं केयं अरिहए पूरिण्णए सं अन्नवहाए, अण्णपरियावा
ए अण्णप्परिग्महाए, जणवयवहाए, जणवयपरियावाण, जणवयपरिग्गहा ए ॥ १८६ ॥
आसविक्ता एतम इच्रचेग समुद्धिया, नम्हा ने विडय नो संवे णिम्मारे पानिय
णाणी ॥ १८७ ॥ उववायं चवं णचा, अणण्णे चर माणे ॥ १८८ ॥ सं णर छण-
ण छणावए, छने णाणुजाणड ॥ १८९ ॥ णिच्विद णदि अर तं षयासूृ, अगोपं
णिसन्ने पावे कम्मं ॥ १०८ ॥ कोहादमाणं हृणिया य वीरे, लॉमस्स पाने
निरयं महतं । नम्दाय वीरे विरते वहारो, र्धिदिन सोयं खहुभूवमामी ॥ १९.१९ ॥
गयं परिय इह वीरे, सोयं परिण्णाय चरिज ठन । उम्मज ल इद् माणव,
णो पाणिगं पाण समःरभिजासि त्ति बेमि ॥ १९५५ ॥ बीभोदेसो समन्तो ॥
संधिं खेगस्म॒ जाणित्ता ॥ १९८३ ॥ जायया बरिया पराम, नस्हा ण रहनाण-
निघायये ॥ १९.४ ॥ जमिणं अन्नमल्लवितिगिन्छाए परिर््ाए ण करेह पविं कम्मं,
कि तत्थ मुणी कारणं लिया ? समय तत्थुवेहाएं अप्पार्ण विप्पसायए ॥ १९.१५, ॥
अणण्णपरमं नाणी, णो पमाए् कयाहवि । आग्रगुनै मया थीरे, जायामायाइ
जाबए् ॥ १९५६ ॥ विरागं रूवे्हिं गच्छिजा महन खुदृए्हिं य ॥ ३९.५ ॥ भागि
र्ति परिण्णाय दोहिंवि अनि अदिस्पमाणेर्हिं से भ छिजह, ण भिज, ण उज्छह,
ण हम्म कंचणं सच्वलोए् ॥ १५८ ॥ अवरेण पुञ्वि ण मरति एगे, किमस्मतीतं
वित्राऽऽगमिस्सं । भासति एगे इद माणवाओ, जमस्यतीनं तं आगमिस्सं ॥१९९॥
णात्तीतमद्रं णय आगमिस्सं, अदं नियच्छति तदामया उः विधुतकम्ये एनाणुपस्ती,
भिजज्ञोसदत्ता खवग महेदी ॥ २०० ॥ छ अररे ! के आणंदे ! एत्यंपि अरगहें
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