तारन - त्रिवेणी | Taran-triveni

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Taran-triveni by हीरालाल जी जैन - Heeralal Ji Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम धरा झातम ही है देव निरंजन, श्रातम ही सदगर्‌ माह ! आतम शाख, धर्म आतम ही, तीथं आरत ही सुखदा) श्रात्म-ममन ही हें रतत्रय- पूरित श्रवगाहन सुखधाम । रेते देव, शास, सद्गुरु, धर्म, तीर्थको सतत प्रणाम । पंडित पूजा




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