विपूवकोष [भाग-४] | Vipoovkosh [Bhag-4]

Book Image : विपूवकोष [भाग-४]  - Vipoovkosh [Bhag-4]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे कप्रिखर--कपूरौ १ वानरके निवासका शान्‌, बन्दरोंके र व . इमं सर (८ दिल ५१ क्ती? ५ कस्य श्रिरसः पुच्छमिव लाति, नाम कोथल ह ) यद श्रद्ननाका मन्दिर विद्यमान ह! | पदमव मदम क 5 कर दे १. कपिखठर (संर त्रि) कापोनां खर द्रव खरो यस्य, | कयुषटिका (सन्स न वत्नी! वारन्ी माति खरवियिष्ट, लो वन्दरकौ | कायति, क-पुष्टि- + १ सर श्रावाजु रखता हो। ही कि र ध कपिदस्तक ( स'० पु ) कापिकच्छ, केवांच ! ः ५ दा। केशक्ी चड़ाके ६ रः सतरी° ) विरमो, दरण, रसौ लपैटमैका (0 चूहा पटिका ¢ (गोपि } , १ ० यु°; कुपुत्र) खंराव ल ~ फपोकच् (ख° श्यो) कथिकच्छ, सश्नायां वा | अपने कुलका धम छोड़ दा + पर दोष: । कपिक'च्छू,लता, कैंवांच । कयत ( दि, सोऽ ) यतक भ कपोच्य (सं पुग) कपिभिवौनरेरिज्यते एष्यति, इालत। १११ +. , कपि-यन्‌-क्यप्‌। र रामचन्द्र २ चौरिका, | वपूय ( स° त्रि ) इन्तितं पूयतो, क-पूय-अच्‌ एवो विर्न ! ३ सुरेव ! 8 हनूमान्‌ । दरादिलातू उलोप: 1. दुंखि, दपर, खर । कपीत ( स'० पु) कपिभिरितः प्राप्तः प्रियलेनिति' | कपूर (° पुर) कपूर, काफूर। यह एक जमा | शेषः) नी एवा बैल 1 इवा खुंशबूदार ससाला जी कपूर वा लगनेते कसीतक (स'० पु०) प्सहच, पाकर, सहोरा। उढ़ता भर श्रागकौ चपट ष्टु नानेषे जलता §। करीतन ८ सं° यु° ) कपोनां & लच्ीं तनोति, कपि- ॥ _ कपूर देखो। डू-तनू पचादाच्‌ू । १ भास्त्रातक, 'भासड़ा। २ गई- | कपूरकचरी ( हदि द° ) गन्धपलाशी, गंपौरी । भारइदच, पाकर, सहोरा। ३ शिरोण, सरसों! | यद्द एक प्रकारकी लतां है। इसके सूलसे सुगन्ध ४ अखला, पीपल । ५ शुवाकष्ठच, श्पारोका पेड । | निकलता है। श्रासामक् दाढ़ी इसके पत्रसे पापोथ ६ विष्वहच्त, वेलका पेड़ । ७ गरइसुण्ड । ८ उुस्वर निर्माण करते हैं। गर्पलागी देखो। दश, गूलर । वपूरकाट ( ष्टि” पु ) धान्यविशेष, किसौ किय्मका करीन्द्र ( स पु ) कपिरिन्ट्र इव कपिषु इन्द्र खेष्टी | जड़इन शान। यद सूच्म चोता है। इसका तरह ला वा। १ हनूमान्‌! र वालि? हे सुग्रीव । 8 विष्णु | सगन्ध भोर खाई है। «परोरभूतधदर्माका कपोन्दो यूरिदादिप: (मारव १९९४९६६) | कपूर (हिं०्पु) मेष छाग प्रति पशका अर्क- ५ जाम्बवान्‌ । | ` दीष, मेड वषे वग रह चौपायोंके वेजोंका थेला। ' कपोव् (ख'° क्ली) कोपिषद् दी; । इक पढे ्योदोः। | कपूरौ {ददिः ति) १ कपूरविशिट्ट, काप रो, जो दा दाशश९१। सरोवरविशेष, एक तालाब \ कपूदसे लैयार'किया गया हो। २९ वापं रणेविगिष्टः कपोवान्‌ ( स० पु ) वशिष्ठ ऋषिक एक एत्र । यड वापरका र्ग रखनेवाला, 'हलकीा पौला। ( प०). चतुथे मन्वन्तर सपि योमि र 1 ३ ववि, एक रङ्ग! यह जद पौतवर्ण रोवान्‌ ( र० पु०) वशिष्ट ऋषिक एक पुत्र । (स्वे |. रदता है। केसर, फिटकरी दौर इरसिंगारके फूलसे कपो ( सं* पु ) कपियोंकि राज्ञा, वन्दरोंके सालिक। | इसे तेयार करते हैं। ४ ताम्बूलविधिष, किसी किस्मका- वालि, सुग्नोव, 'इचमानू मसतिकों कपीश कदत ष्ट) | पा) यह शति दीं णवं कटु दोता₹। दशका कपो ( < पु०) कपो ष्टः प्रियः, &-तत्‌। | प्रान्त सङर रता ₹। शषको बम्बर भोर लोग ६ राजादनीहच, खिरनी । २ कविय, केथा। भषिक खाद &। इते भाता--कपूरी पान लाने




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