स्वदेशी और ग्रामोद्योग | Swadeshi Aur Gramodhyog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वदेशी ९.
मेरे मनोगत बिचार ही इन कड़े शब्दों में प्रकट हो रहे हैं। वे बेचारे
तो काम करते चले जा रहे थे; उन्हे यह थोड़े ही माठम था; कि इस
काम में किसी तरह की कोई धोखा-धड़ी या आत्म-प्रवंचना है ।
में अपने असिप्राय को और अधिक स्पष्ट करूंगा । जिन चीज़ों
के प्रचार के ठिए खास सहायता करने की जरूरत नहीं; उन्हीं चीज़ों
की प्रदर्शिनी हम करते-फिरते हैं। इसका यह परिणाम होता है;
किउन चीज़ों की या तो क़ीमत बढ़ जाती है; या एक-दूसरे के
साथ स्पर्धा करनेवाठी उन्नतिशीछठ कोठियों में अवांछनीय रस्साकशी
होने ठगती है ।
कपड़े की; शक्कर की और चावल की मिछो को हमारी मद्द् की
दरकार नदीं दे । किन्तु यदि हम अनर्मागी मदद् इन मिलो को देते
रदेगे, तो चरखा, करघा, खादी, ऊख पेरने का कोर्ट, ओर जीवन-प्रद
तथा पोषक तत्त्वों से भरा हुआ गुड ओर इसी तरह ओखली-मूसल का
छुटा चावछ--गॉँव की इन सब चोज़ों--का हम नाश कर देगे।
इसछिए हमारा यह स्पष्ट कत्तंव्य है; कि गाँव के चरखे को; गाँव के
कोल्हू को और गाँव की ओखलढी को किस रीति से जिन्दा रखा
जा सकता दै, इसकी हमे बराबर खोज कपएते रहना चाहिए ! चरखे,
कोल्टर ओर ओखटी के ही माङ का प्रचार किया जाय । उनके गुणों
को बतढाया जाय | उनमें काम करनेवाले छोगों की स्थिति की
जाँच-पड़ताढ की जाय ओर कल-कारखानों के बेकार बेंठे हुए
कारीगरों की गणना करके श्राम के इन साधनों में--उनके श्राम्यरूप
में ही--सुधार करने के तरीके दूँढ़कर मिछों की प्रतिस्पर्धा का सुका-
विला करने में उन बेकार कारीगरों को मदद पहुँचाई जाय । «
इन उद्योग-धन्धों के सम्बन्ध मे हमने कितनी भयंकर और
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