ऋतंभरा | Ritambhara
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ० सुनीतिकुमार चाटुजर्या - Dr. Suneetikumar Chatujryaa
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी की उत्पत्ति
तथव के विचार से धियसंन आईडि पंडितों ने राजस्थान, गुजरात, पंजाब और
अवध कौ घाकृत बोलियों पर शौरसेनी का पिशोष प्रभाव स्वीकार किया है ।
राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी ओर अवधी के विकास में शोरसेनी ने बहुत
काम किया 1 सिफ आदेशिक घ्राकृतों से इन जोलियों की उत्पत्ति नहीं हुई;
एसा विचार होता है ।
इस्वी घथम सहख, वर्ष! के चीच में प्राचीन सारतवष में एक नवीन
राष्ट्र या साहिस्यिक भाषा का उदसव दुआ । यह अपडंश भाषा थी, जो
शोरसनी प्राकृत की एक शेली थी । अपडंश माषा--यह शोरसनी यपश
पंजाब स बगाल तक आर नेपाल सं महाराष्ट तक साधारण शिष्ट भाषा
आर साहित्यिक भाषा बनी । लगभग इईरवी सच ८०० से १३ या १४
सा तक शारसनी अपडंश का प्रचार-काल था । गुजरात ओर राजपूताने कं
जेमों के द्वारा इसमें एक बड़ा साहित्य बना । बंगाल के प्राचीन बौद्ध
सिद्धाचायंगण इसमें पद रचते थे जिनका अन्त में भोटभाषा (तिव्बती)
में उर्था हुआ था । इसके अलावा भारत में इस अपअंश में एक विराट
लोकसाहित्य बना, जिसके टूटे-फूटे पद और गीत आदि हेमचन्द्के प्राकृत
व्याकरण आर प्राकृत-पिंगल ओर छुन्द-प्न्थ में पाये जाते है । शौरसेनी
अपडंश की प्रतिष्ठा के कई कारण थे । स्वी प्रथम सहखक की अन्तिम
सदियों के राजपूत राजाओं की सभा में यह भाषा बोली जाती थी, क्योंकि
यह माषा उसी समय मध्यदेश आर उसके संलग्न ान्तों में--झाधुनिक
पद्ध मे--साघारणतः घरेलू भाषा-र्वरूप प्रयुक्त होती थी । द्वितीय
कारण यह हैं कि इस समय गोरखपन्थी आदि अनेक हिन्दू सम्प्रदाय के
गुरं लाग जो. पंजाब आर हिन्दुस्ताय् से नवजात हिन्दू-धम की वाणी
लेकर भारत के अन्य ग्रदेश में गये थे, वे भी इसी भाषा को बोलते थे,
इसमें पद च्रादि बनाते थे, रोर इसी में उपदेश देते थे । उसी समय उत्तर-
भारत के कमौ जिया आदि बाह्मण बंगाल आदि प्रदेश में बाह्यण श्ाचार
प्रौर संस्कृति ले उपनिविष्ट हुए । इन सथ कारणे से, ्राज से लगभग एक
हजार साल पहले, जिसे हम हिन्दी का पूवं रूप कह सकते है, वही
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