बर्लिन का अवरोध | Barlin ka Avrodh
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क
प्रसि
रेगिस्तान की माया
जेखक--होनोर डी वैलज्ञेक
पशु-शाला से बाहर आते दही उस मिला ने कहा--“कैसा
भयानक दृश्य हे !”'
श्रव तकर वह पिंजड़े के भीतर खिलाड़ी श्रौर उसके पालतू शेर
का खेल देख रही थी।
“मनुष्य कैसे इन भयानक पशुत्रों को इस तरह वश में कर लेता
है ? उनके स्नेह पर कैसे इतना निभर करता है ?”?
मेने कहा--“श्रापको जो बात एक बहुत गहरी समस्या-सी लग
रही दै, वह प्रति के एक नियम के सिवाय श्रौर कुछ भी नहीं है ।”'
तत्र वष श्रविश्वास की मुस्कान के साथ कह उटी-““श्रच््ा, यह्
बात है !”
मैंने पूछा--''क्या श्रापको यदद ख्याल है कि इन पशुश्रों में स्नेह
या प्रेम करने की क्षमता नहीं है ? सभ्य मनुष्यों में जितने दोष श्रौर
गुण हैं, सब इनको सिखाये जा सकते हैं ।””
वह महिला मेरी श्रोर बहुत चकित-सी होकर देखती रही |
मेने कहा“ भी पहली बार इस खिलाड़ी को क्रूर जानवरों
के साथ खेलते देख श्रापकी तरह ही चक्रित हुश्राथा । मेरी बगल में
एक बूढ़ा सैनिक खड़ा था, उसका एक पैर जाँघ से कटा हुशभ्रा था ।
उसके चेदरे ने और शक्क ने मुक पर एक विचित्र प्रभाव डाला ।
उसके. गवे से ऊँचे माथे पर मानो किसी श्रदश्य विजय का टीका
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